________________ दशसी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 363 काम-वासना का उदय हो गया है विहरेज्जा-ऐसी होकर विचरण करे य-और सा-वह परक्कमेज्जा-पराक्रम करती हुई पासेज्जा-देखे से-अथ जा-जो इमा-यह इत्थिया-स्त्री भवति-है जो एगा एगजाया-अकेली और सपत्नी से रहित है एगाभरण-पिहिया और एक जाति के भूषण और वस्त्र पहने हुए है तेल्ला-पेल्ला इव-तेल की पेटी के समान सुसंपरिगहिया-भली भांति ग्रहण की हुई रयण-करंडग-समाणी-रत्नों के डब्बे के समान अत्यन्त प्रिय है अतः तीसे णं-उसके अतिजायमाणीए-घर में प्रवेश करते हुए निज्जायमाणीए वा-घर से बाहर निकलते हुए महं-बहुत से दासी दासी दास-दास च-पुनः एव–अवधारण अर्थ में है किं-क्या भे-आपके आसगस्स-मुख को सदति-अच्छा लगता है जं-जिसको पासित्ता-देखकर णिग्गंथी-निर्ग्रन्थी णिदाणं-निदान कर्म करेति-करती है / ___मूलार्थ-हे आयुष्मान् ! श्रमण ! इस प्रकार मैंने धर्म प्रतिपादन किया है / यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है और सब दुःखों का विनाश करता है / जिस धर्म की शिक्षा के लिए उपस्थित निर्ग्रन्थी विचरती हुई पूर्व बुभुक्षा के कारण से उदीर्ण-कामा (काम भोगों की उत्कट इच्छा होने से) होकर भी संयम मार्ग में पराक्रम करती है और फिर पराक्रम करती हुई स्त्री-गुणों से युक्त किसी स्त्री को देखती है जो अपने पति की एक ही पत्नी है, जिसने एक ही जाति के वस्त्र और आभूषण पहने हुए हैं, जो तेल की पेटी के समान अच्छी प्रकार से रक्षित है और वस्त्र और आभूषण पहने हुए है, और वस्त्र की पेटी की तरह भली भांति ग्रहण की गई है, जो रत्नों की पिटारी के समान आदरणीय और प्यारी है तथा जो घर के भीतर और घर से बाहर जाते हुये अनेक दास और दासियों से घिरी रहती है और जिसकी दास लोग हर समय प्रार्थना करते रहते हैं कि आपको कौनसा पदार्थ अच्छा लगता है, उसको देखकर निर्ग्रन्थी निदान कर्म करती है। टीका-पहले इसी सूत्र में निर्ग्रन्थ के निदान कर्म का विषय वर्णन किया गया था / इस सूत्र में निर्ग्रन्थी के निदान-कर्म का विषय वर्णन किया गया है, श्री भगवान् कहते 1कि हे आयुष्मन् ! श्रमण ! मैंने जिस निर्ग्रन्थ-प्रवचन-रूप धर्म का प्रतिपादन किया है