________________ PUnrev 0 000 1 362 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा अब सूत्रकार द्वितीय निदान कर्म का विषय वर्णन करते हैं: एवं खलु समणाउसो मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे जाव सव्व-दुक्खाणं अंतं करेति / जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवडिया विहरमाणी पुरा दिगिच्छाए उदिण्ण-काम-जाया विहरेज्ज सा य परक्कमेज्जा सा य परक्कममाणी पासेज्जा से जा इमा इत्थिया भवति एगा एगजाया. एगाभरण-पिहाणा तेल्ल-पेला इव सुसंगोपिता चेल-पेला इव सुसंपरिगहिया रयण-करंडक समाणी, तीसे णं अतिजायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा पुरतो महं दासी-दास चेव किं भे आसगस्स सदति जं पासित्ता णिग्गंथी णिदाणं करेति / ___ एवं खलु श्रमणाः ! आयुष्मन्तः ! मया धर्मः प्रज्ञप्तः, इदमेवनिर्ग्रन्थ-प्रवचनं सर्व-दुःखानामन्तं करोति / यस्य नु धर्मस्य निर्ग्रन्थी शिक्षाय उपस्थिता विहरन्ती पुरा जिघित्सया उदीर्ण-काम-जाता विहरेत्, सा च पराक्रमेत्, सा च पराक्रमन्ती पश्येत्-अथ यैषा स्त्री भवत्येका, एक-जाया, एकाभरण-पिधाना, तैल-पेटेव सुसंगोपिता, चैल-पेटेव सुसंपरिग्रहीता, रत्नक-रण्डक समाना, तस्या अतियान्त्या निर्यान्त्या वा पुरतो महदासीदासाश्चैव (भवन्ति) किं भवत्या आस्यकस्य स्वदते यद् दृष्ट्वा निर्ग्रन्थी निदानं करोति / पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे चिरजीवी श्रमणो! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से मए-मैंने धम्मे–धर्म पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है इणमेव-यही निग्गंथे-निर्ग्रन्थ पावयणे-प्रवचन जाव-यावत् सव्वदुक्खाणं-सब दुःखों का अंतं-अन्त करेति-करता है / जस्स णं-जिस धम्मस्स-धर्म की सिक्खाए-शिक्षा के लिए उवट्ठिया-उपस्थित निग्गंथी-निर्ग्रन्थी विहरमाणी-विचरती हुई पुरादिगिच्छाए-पूर्व क्षुधा से उदिण्ण-काम-जाया-जिस में -