________________ है दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम / . 3656 . - - अब सूत्रकार उक्त निदान कर्म का फल कहते हैं: एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथी णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देव-लोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति / महिड्ढिएसु जाव सा णं तत्थ देवे भवति / जाव भुंजमाणी विहरति / तस्स णं ताओ देव-लोगाओ आउ-क्खएणं भवक्खएणं ठिइ-क्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया एतेसिं णं अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति / सा णं तत्थ दारिया भवति सुकुमाला जाव सुरूवा। एवं खलु श्रमणायुष्मन् ! निर्ग्रन्थी निदानं कृत्वा तत्स्थान-मनालोच्य (ततः) अप्रतिक्रान्ता कालमासे कालं कृत्वान्यतरेषु देवलोकेषु देवतयोपपत्री भवति / महर्द्धिकेषु यावत्सा नु तत्र देवो भवति जाव भुञ्जाना विहरति / सा नु तस्माद्देव-लोका-दायुःक्षयेण भव-क्षयेण स्थिति-क्षयेणानन्तरं चयं त्यक्त्वा य इमे भवन्त्युग्र-पुत्रा महा-स्वादुका भोग-पुत्रा महा-मातृका एतेषान्वन्यतरस्मिन् कुले दारिकातया प्रत्यायाति / सा नु तत्र दारिका भवति सुकुमारा यावत् सुरूपा / ___पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे आयुष्मान् ! श्रमण ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से निग्गंथी-निर्ग्रन्थी णिदाणं-निदान कर्म किच्चा-करके तस्स-उस ठाणस्स-स्थान के अणालोइय-बिना आलोचना किये और उस स्थान से अप्पडिक्कता-बिना पीछे हटे कालमासे-मृत्यु के समय कालं किच्चा-काल करके अण्णतरेसु देवलोएसु-देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवत्ताए-देवरूप से उववत्तारो भवति-उत्पन्न होती है महिड्ढिएसु-महर्द्धिक देवों में जाव-यावत् सा णं-वह तत्थ-वहां देवे भवति-देव हो जाती है जाव-यावत् भुंजमाणी-सुखों को भोगती हुई विहरति-विचरण करती है / तस्स AR