SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / श्रेणिक राजा के उक्त आदेश को सुनकर हृदय में हर्षित और सन्तुष्ट होता हुआ जहां यान-शाला थी वहाँ गया। वहां जाकर यान-शाला में प्रविष्ट हुआ / वहां यानों को देखा, धूल आदि झाड़ कर उनको साफ किया, फिर उनको नीचे उतार कर उनके ऊपर से वस्त्र हटाए और हटाकर यान-शाला से बाहर निकाला, उनको अलंकृत किया और (राज-माग) एक स्थान पर खड़ा कर दिया / टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि सेना के तय्यार हो जाने पर श्रेणिक राजा ने यान-शालिक को बुलाया और उससे कहा कि तुम शीघ्र जाकर धर्म-प्रयोग के लिये नियत यानों में सबसे प्रधान और सर्वांग-पूर्ण यानों को तय्यार कर उपस्थित करो। आज्ञा पाकर यान-शालिक यान-शाला में गया और उन रथों को निकाल कर उसने उन्हें साफ किया और अच्छी तरह अलंकृत कर एक स्थान पर खड़ा कर दिया। "धम्मियं जाण-प्पवरं" की वृत्तिकार इस प्रकार व्याख्या करते हैं-"धर्मः प्रयोजनमस्य धर्माय प्रयुक्तो वा धार्मिकः / अथवा धर्मार्थं यानं गमनं येन तद्धर्मयानं तेषां धर्मयानानां मध्ये प्रवरं श्रेष्ठं शीघ्र-गमनत्वादिगुणोपेतं योक्त्रितमोपस्थापय-इति" अर्थात् धर्म के कार्यों में जो प्रयुक्त होता हो अथवा जिससे केवल धर्म के कार्यों में ही गमन होता हो उसको धार्मिक यान कहते हैं। फिर सूत्रकार इसी से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं: जेणेव वाहण-साला तेणेव उवागच्छइ-रत्ता, वाहणसालं अणुप्पविसइ-रत्ता, वाहणाई पच्चुवेक्खइ-२त्ता, वाहणाई संपमज्जइ-रत्ता, वाहणाई अप्फालेइ-रत्ता, वाहणाई णीणेइरत्ता, दूसं पवीणेइ-रत्ता, वाहणाई समलंकरेइ-रत्ता, वरभंडग-मंडियाई करेइ-रत्ता, वाहणाई जाणगं जोएइ-रत्ता, वट्टमग्गं गाहेइ-रत्ता, पओदलहिँ पओद-धरे अ समं आरोहइ-रत्ता, अंतरासम-पदंसि जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ-रत्ता तते णं करयल जाव
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy