________________ है नवमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / .. 3064 आए और दीनतापूर्वक कुछ कहे किन्तु वह तिरस्कार-पूर्ण तथा अनुचित और प्रतिकूल वचनों से उस (राजा) का तिरस्कार करे तथा उसके शब्दादि विशिष्ट भोगों का विनाश करे तो वह (मन्त्री) महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है | यहां सामान्य रूप से राजा और मन्त्री को उदाहरण रूप में रखकर उपर्युक्त कथन किया गया है / उपलक्षण से तत्सदृश अन्य श्रेष्ठी और उसके भृत्यों के विषय में भी जान लेना चाहिए / कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कोई महा-पुरुष किसी अपने कर्मचारी के ऊपर विश्वास कर अपने सब अधिकार उसको दे दे और वह स्वामी से विश्वास-घात कर उसके सारे धन-धान्य पर अपना ही अधिकार कर उसको पदच्युत कर दे और उसका तिरस्कार करे तथा लोगों की दृष्टि से उसको गिरा दे तो वह (कर्मचारी) महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / विश्वास-घात एक अत्यन्त भयंकर पाप है, अतः उक्त कर्म के बन्धन से बचने के इच्छुक को कदापि यह नहीं करना चाहिए / अब सूत्रकार ग्यारहवें स्थान के विषय में कहते हैं :अकुमार-भूए जे केई कुमार-भूए ति हं वए / इत्थि-विसय-गेहिए महामोहं पकुव्वइ / / 11 / / अकुमार-भूतो यः कश्चित्कुमार-भूतोऽहमिति वदेत् / .. स्त्री-विषय-गृद्धश्च महामोहं प्रकुरुते / / 11 / / पदार्थान्वयः-जे-जो केई-कोई अकुमार-भूए-बाल ब्रह्मचारी नही है किन्तु हं-मैं कुमार-भूए-बाल-ब्रह्मचारी हूँ ति-इस प्रकार वए-कहता है और इत्थि-विसय-गेहिएस्त्री-विषयक सुखों में लिप्त है वह महामोह-महा-मोहनीय कर्म की पकुव्वइ-उपार्जना करता है / ... मूलार्थ-जो यथार्थ में ब्रह्मचारी नहीं किन्तु अपने आप को बाल ब्रह्मचारी कहता है और स्त्री-विषयक भोगों में लिप्त है वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / टीका-इस सूत्र में अब्रह्मचर्य से होने वाले महा-मोहनीय कर्म का विषय वर्णन किया गया है / जो कोई व्यक्ति बाल-ब्रह्मचारी नहीं किन्तु लोगों से कहता है कि मैं