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________________ 310 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् नवमी दशा बाल-ब्रह्मचारी हूं और वास्तव में स्त्री-विषयक सुखों में लिप्त होकर उन (स्त्रियों) के वशवर्ती हो, वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / क्योंकि उसका आत्मा एक तो मैथुन और दूसरे असत्य के वशीभूत होता है / यहां पर सूत्रकार का तात्पर्य केवल असत्य भाषण से ही है अर्थात् जो व्यक्ति किसी प्रकार भी असत्य भाषण करता हे वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आता है / अतः अपनी शुभ कामना करने वाले व्यक्ति को असत्य भाषण का सर्वथा परित्याग करना चाहिए / इस सूत्र में 'कुमार-भूत' शब्द से 'बाल-ब्रह्मचारी' अर्थ लेना चाहिए / . अब सूत्रकार बारहवें स्थान के विषय में कहते हैं :अबंभयारी जे केइ बंभयारी ति हं वए / गद्दहेव्व गवां मज्झे विस्सरं नयइ नदं / / अब्रह्मचारी यः कश्चिद् ब्रह्मचारीत्यहं वदेत् / गर्दभ इव गवां मध्ये विस्वरं नदति नदम् / / पदार्थान्वयः-जे-जो केइ-कोई अबंभयारी-ब्रह्मचारी नहीं है और अपने आपको हं-मैं बंभयारी-ब्रह्मचारी हूं त्ति-इस प्रकार वए-कहता है वह गवां-गायों के मज्झे-बीच में गद्दहेव्व-गदहे के समान विस्सरं-विस्वर (कर्ण-कटु) नदं-शब्द (नाद) नयइ-करता मूलार्थ-जो कोई ब्रह्मचारी न हो किन्तु लोगों से कहता है कि मैं ब्रह्मचारी हूं वह गायों के बीच में गर्दभ के समान विस्वर नाद (शब्द) करता है। टीका-इस सूत्र में भी असत्य और मैथुन विषयक महा-मोहनीय कर्म का ही वर्णन किया गया है / जो कोई व्यक्ति ब्रह्मचारी तो नहीं है किन्तु जनता में अपना यश करने के लिए कहता है कि मैं ब्रह्मचारी हूँ उसका इस प्रकार कहना ही इतना अप्रिय लगता है जैसे गायों के समूह में गर्दभ का स्वर | किन्तु वह यह नहीं जानता कि असत्य को छिपाने का कोई कितना ही प्रयत्न करे वह छिपाये नहीं छिपता / जिस वाणी में सत्यता नहीं होती, सज्जन लोगों को वह स्वभाव से ही अच्छी नहीं लगती / उनका चित्त साक्षी देता है कि अमुक व्यक्ति झूठ कह रहा है और अमुक सत्य / इस प्रकार एक बार जब
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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