________________ नवमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 267 यहां यह उपोद्धात केवल संक्षेप रूप में ही कहा गया है / जो इसको विशेष रूप से जानना चाहें उनको 'औपपातिक सूत्र' देखना चाहिए / उसके पढ़ने से पाठकों को उस समय के भारतवर्ष का पूर्णतया ज्ञान हो सकता है / 'औपपातिक सूत्र' का यह उपोद्धात ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े काम का है / इससे उस समय के भारतीय राज्य-शासन का अच्छी तरह ज्ञान हो सकता है / अतः 'औपपातिक सूत्र' ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यन्त उपयोगी है / प्रत्येक व्यक्ति को उसका अध्ययन करना श्रेयस्कर है / परिषद् के चले जाने के अनन्तर क्या हुआ ? अब सूत्रकार इसी का वर्णन करते हैं:____ अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी “एवं खलु अज्जो ! तीसं मोह-ठाणाई जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयारेमाणे वा समायारेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ / तं जहा"____ आर्याः ! श्रमणो भगवान् महावीरो बहून्निर्ग्रन्थान्निर्ग्रन्थींश्चामन्त्र्यैवमवादीत् "एवं खलु आर्याः ! त्रिंशद् मोहनीय-स्थानानि यानीमानि स्त्री वा पुरुषो वाभीक्ष्णमभीक्ष्णमाचरन् वा समाचरन् वा मोहनीयतया कर्म प्रकरोति / तद्यथा" _. पदार्थान्वयः-अज्जोति-हे आर्य लोगो ! इस प्रकार सम्बोधन कर समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर बहवे-बहुत से निग्गंथा-निर्ग्रन्थों को य-और निग्गंथीओ-निर्ग्रन्थियों को आमंतेत्ता-आमन्त्रित कर एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे / एवं-इस प्रकार खलु-निश्चय से अज्जो-हे आर्यो ! तीस-तीस मोह-ठाणाइं-मोहनीय कर्म के स्थान हैं. जाई इमाइं-जिनको इत्थीओ-स्त्रियां वा-अथवा पुरिसो-पुरुष अभिक्खणं-अभिक्खणं-पुनः-पुनः आयारेमाणे-सामान्यतया आचरण करते हुए वा-अथवा समायारेमाणे-विशेषता से समाचरण करते हुए मोहिणज्जत्ताए-मोहनीय कर्म के वश में होकर कम्म पकरेइ-कर्म करते हैं /