________________ 0 00000 सप्तमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 246 अब सूत्रकार फिर उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं: मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स छविहा गोचरिया पण्णत्ता / तं जहा-पेला(डा), अद्धपेला(डा), गोमुत्तिया, पतंग-वीहिया, संवुक्कावट्टा, गत्तु पच्चागया / मासिकी नु भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नस्यानगारस्य षड्विधा गोचरी प्रज्ञप्ता / तद्यथा-पेटा, अर्द्धपेटा, गोमूत्रिका, पतङ्गवीथिका, शम्बूकावर्ता, गत्वा प्रत्यागता / पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अणगारस्स-अनगार की छविहा-छ: प्रकार की गोचरिया-गोचरी पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तं जहा-जैसे पेला(डा)-चतुष्कोण पेटी (सन्दूक) के आकार से अद्धपेला(डा)-द्विकोण पेटी के आकार से गोमुत्तिया-गोमूत्रिका के आकार से पतंग-वीहिया-पतंग की चाल के समान अनियमित और क्रमहीन गति से संवुक्कावट्टा-शंख के समान वर्तुल आकार से गत्तु पच्चागया-जाकर फिर प्रत्यावर्तन करता हुआ गोचरी करे | ___मूलार्थ-मासिकी प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार की छ: प्रकार की गोचर-विधि कही गई है / जैसे-पेटाकार से, अर्द्धपेटाकार से, गोमूत्रिकाकार से, पतङ्गवीथिकाकार से, शंखावर्ताकार से और जाकर प्रत्यावर्तन करते हुए / ___टीका-इस सूत्र में गोचरी के स्थानों का वर्णन किया गया है / यदि वीथिका (मार्ग, गली) पेटाकार और चतुष्कोण हो तो वहां उसी प्रकार गोचरी करे; जहां अर्द्धपेटाकार, द्विकोण हो वहां उसी प्रकार गोचरी करनी चाहिए तथा जिस प्रकार गोमूत्र वलयाकार होता है उसी प्रकार भिक्षा के लिए गमन करे, जिस प्रकार शलभ (पतंग) उड़कर फिर बैठ जाता है ठीक उसी प्रकार एक घर से भिक्षा लेकर बीच में पांच सात घर छोड़कर अन्य किसी घर से भिक्षा ले / जिस प्रकार शङ्ख के आवर्तन होते हैं उसी तरह भिक्षा ग्रहण करे / किन्तु शङ्ख के आवर्तन दो प्रकार से होते हैं-दाहिने से बाएं या बाएं से दाहिने तथा प्रदक्षिण से और अप्रदक्षिण से अथवा आभ्यन्तरिक और बाह्य / जिस भिक्षु ने जिस -