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________________ Fe कर 250 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् - सप्तमी दशा प्रकार के आवर्तन का अभिग्रह किया हो उसको उसी प्रकार से भिक्षा करनी चाहिए और पहले वीथिका (गली) के अन्तिम घर पर जाकर फिर वापिस होकर भिक्षा ग्रहण करे / “गत्वा प्रत्यागता नाम-एकस्यां गृहपङक्तयां भिक्षां गृण्हन्, गत्वा द्वितीयायां तथैव निवर्तते / यह सब कहने का तात्पर्य इतना ही है कि प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार ने भिक्षा के विषय में जैसा अभिग्रह किया हो उसी प्रकार उसके पालन करने में यत्न-शील होना चाहिए / अब सूत्रकार उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं :- . _मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ कप्पइ से तत्थ एग-राइयं वसित्तए / जत्थ णं केइ न जाणइ कप्पइ से तथ्य एग-रायं वा दु-रायं वा वसित्तए / नो से कप्पइ एग-रायाओ वा दु-रायाओ वा परं वत्थए / जे तत्थ एग-रायाओ वा दु-रायाओ वा परं वसति से संतराछेदे वा .. परिहारे वा / मासिकी नु भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नस्यानगारस्य यत्र नु कोऽपि जानाति कल्पते स तत्रैकरात्रं वसितुम् / यत्र नु कोऽपि न जानाति कल्पते स तत्रैकरात्रं द्विरात्रं वा वसितुम् / नैव स कल्पत एकरात्राद् द्विरात्राद्वा परं वसितुम् / यस्तत्रैक-रात्राद् द्वि-रात्राद् वा परं वसति सोऽन्तराछेदेन वा परिहारेण वा / पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अणगारस्स-अनगार को जत्थ-जहां केई-कोई जाणइ-जानता है तत्थ-वहां से-वह एग-राइयं-एक रात्रि वसित्तए कप्पइ-रह सकता है / किन्तु जत्थ-जहां केइ-कोई न जाणइ-उसको नहीं जानता से-वह तत्थ-वहां एग-राय-एक रात्रि वा-अथवा दु-रायंदो रात्रि वा-परस्परापेक्षा वसित्तए कप्पइ-रह सकता है / परन्तु से-वह एग-रायाओ-एक रात्रि वा-अथवा दु-रायाओ-दो रात्रि से परं-अधिक वत्थए नो कप्पइ-नहीं रह सकता जे-जो तत्थ-वहां एग-रायाओ वा-एक रात्रि अथवा दु-रायाओ-दो रात्रि के परं-उपरान्त
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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