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________________ wamm 000 षष्ठी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 2169 सव्व-धम्म-रुई-सर्व-धर्म-विषयक रुचि यावि-भवति होती है | जाव-यावत् राओवरायं-रात्रि और दिन बंभयारी-ब्रह्मचारी रहता है / सचित्ताहारे-सचित आहार से-उसका परिण्णाए-प्रत्याख्यात भवति-होता है / से-उसका आरंभे-आरम्भ परिण्णाए-परिज्ञात भवति-होता है / किन्तु पेसारंभे-अन्य से आरम्भ (कृषि आदि पाप-पूर्ण व्यापार) कराना से-उसका अपरिण्णाए-अपरिज्ञात भवति-होता है | से-वह एयारूवेण-इस प्रकार के विहारेण-विहार से विहरमाणे-विचरता हुआ जाव-यावत् जहन्नेण-जघन्य से एगाह-एक दिन दुयाह-दो दिन वा-अथवा तियाहं-तीन दिन जाव-यावत् उक्कोसेण-उत्कृष्ट से अट्ठ मासे-आठ मास पर्यन्त विहरेज्जा-विचरण करे से तं-यही अट्ठमा-आठवीं उवासग-पडिमा-उपासक-प्रतिमा प्रतिपादन की है / - मूलार्थ-इसके अनन्तर आठवीं प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं / इस प्रतिमा को धारण करने वाले की सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है / वह यावद् रात्रि और दिवस में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, सचित्त आहार और आरम्भ का परित्याग कर देता है | किन्तु वह दूसरों से आरम्भ कराने का परित्याग नहीं करता / इस प्रकार विचरता हुआ वह कम से कम एक, दो या तीन दिन और अधिक से अधिक आठ मास तक विचरण करता है / यही आठवीं उपासक-प्रतिमा है / टीका-इस सूत्र में आठवीं उपासक-प्रतिमा का विषय प्रतिपादन किया गया है / / इस प्रतिमा में प्रविष्ट होने वाला व्यक्ति पहली प्रतिमा से सातवी प्रतिमा तक के सम्पूर्ण नियमों का निरतिचार से पालन करता है / वह विशेषतया सर्वदा और सर्वथा ब्रह्मचारी रहता है / वह यद्यपि कृषि और वाणिज्यादि कर्म स्वयं नहीं करता किन्तु दूसरों से कराने का उसको निषेध नहीं / अतः वह आजीविका के निमित्त दूसरों से इन कामों को कराता है, स्वयं कभी उसमें प्रवृत्त नहीं होता। यहां पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब अन्य लोगों से कृषि आदि कर्म कराता है तो क्या उसको इसका पाप नहीं लगता ? उत्तर में कहा जाता है कि पाप कर्म करने के तीन मार्ग हैं-करना, कराना और पापकर्म में अनुमति प्रदान करना / स्वयं पापकर्म न करने का तो यहां नियम हो गया / शेष दो कर्मों का उसके लिए नियम नहीं हैं, किन्तु इनका पाप उसको अवश्य लगता है /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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