________________ 218 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा निरतिचार से पालन करता है / वह विशेषतया रात्रि और दिन में ब्रह्मचर्य धारण करता हे / “राओवरायं (राउवरत्तिं) वा बंभयारी-रात्रिर्निशा, अपगता रात्रिः अपरात्रो-दिवसः, रात्रिश्चापरात्रश्च राज्यपरात्रो तयोः ब्रह्मचर्य का पालन करता है / इनके अतिरिक्त वह सचित्त आहार का भी परित्याग कर देता है, अर्थात् भोजन और जल-प्रासुक ही ग्रहण करता है / किन्तु उसने आरम्भ (कृषि आदि पापपूर्ण व्यापार) के करने और कराने तथा उक्त विषय में अनुमति देने का परित्याग नहीं किया होता / अतः एव उसके लिए आरम्भ अपरिज्ञात कहा है। इस प्रतिमा का काल कम से कम एक दो या तीन और अधिक से अधिक सात मास है / जघन्य से अधिक और उत्कृष्ट से मध्यम काल के विषय में जिज्ञासुओं को स्वयं विचार कर लेना चाहिए / ___ अब सूत्रकार आठवीं प्रतिमा का विषय कहते हैं: अहावरा अट्ठमा उवासग-पडिमा / सव्व-धम्म-रुई यावि भवति / जाव राओवरायं बंभयारी | सचित्ताहारे से परिण्णाए भवति / आरंभे से परिण्णाए भवति / पेसारंभे अपरिण्णाए भवति / से णं एयारूवेण विहारेण विहर-माणे जाव जहन्नेण एगाहं दुयाहं तियाहं वा जाव उक्कोसेण अट्ठ मासे विहरेज्जा / से तं अट्ठमा उवासग-पडिमा / / 7 / / अथापराष्टम्युपासक-प्रतिमा / सर्व-धर्म-रुचिश्चापि भवति / यावद् रात्र्यपरात्रं ब्रह्मचारी | सचित्ताहारस्तस्य परिज्ञातो भवति / आरम्भस्तस्य परिज्ञातो भवति / प्रेष्यारम्भोऽपरिज्ञातो भवति / स चैतद्रूपेण विहारेण विहरन् यावज्जघन्येनैकाहं द्वयहं त्र्यहं वा यावदुत्कर्षेणाष्ट मासान् विहरते / सेयमष्टम्युपासक-प्रतिमा / / 7 / / - पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर अट्ठमा-आठवीं उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा प्रतिपादन की है / इस प्रतिमा के ग्रहण करने वाले की Aab