________________ { 220 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा इस प्रतिमा का नाम 'आरम्भ-परित्याग' प्रतिमा है / इसका पालन-काल अधिक से अधिक आठ मास है / शेष विधान पूर्ववत् जानना चाहिए / __ अब सूत्रकार नवीं प्रतिमा का विषय कहते हैं: अहावरा नवमा उवासग-पडिमा / सव्व-धम्म-रुई यावि भवति / जाव राओवरायं बंभयारी / सचित्ता-हारे से परिणाए भवति / आरंभे से परिण्णाए भवति / पेसारंभे से परिणाए भवति / उद्दिठ्ठ-भत्ते से अपरिण्णाए भवति / से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे जहन्नेण एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्को सेण नव मासे विहरे ज्जा / से तं नवमा उवासग-पडिमा ||6|| अथापरा नवम्युपासक-प्रतिमा / सर्व-धर्म-रुचिंश्चापि भवति / यावद् रात्र्यपरात्रं ब्रह्मचारी | सचित्ताहारस्तस्य परिज्ञातो भवति / आरम्भस्तस्य परिज्ञातो भवति / प्रेष्यारम्भ-स्तस्य परिज्ञातो भवति / उद्दिष्ट-भक्तं तस्यापरिज्ञातं भवति / स चैतद्रूपेण विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं वा द्वयह वा त्र्यहं वोत्कर्षेण नव मासान् विहरेत् / सेयं नवम्युपासक-प्रतिमा / / 6 / / पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर नवमा नौवीं उवासग-पडिमा-उपासक-प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं / इस प्रतिमा वाले की सव्व-धम्म-रुई-सर्व-धर्म-विषयक रुचि यावि भवति होती है / जाव-यावत् राओवरायं-रात और दिन में वह बंभयारी-ब्रह्मचारी होता है / से-उसका सचित्ताहारे–सचित्त आहार परिण्णाए-परिज्ञात भवति-होता है / से-उसका आरंभे-आरम्भ परिण्णाए-परिज्ञात भवति होता है / से-उसका पेसारंभे-प्रेष्यारम्भ (दूसरों से कृषि वाणिज्य आदि कराना) परिण्णाए-परिज्ञात भवति-होता है / किन्तु से-उसका उद्दिट्ठ-भत्तं-उद्दिष्ट-भक्त (उसके उद्देश्य से बनाया हुआ भोजन) अपरिण्णाए-अपरिज्ञात भवति-होता है / से-वह एयारूवेण-इस प्रकार के विहारेण-विहार से विहरमाणे-विचरंता हुआ जहन्नेण-जघन्य से एगाहं वा-एक दिन अथवा दुयाहं वा-दो दिन अथवा तियाहं 00