________________ 4064 Enten है पंचमी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम / 146 अभिलाषा छोड़ दी हो, जो भयङ्कर से भयङ्कर कष्टों को सहन करने वाला अर्थात् देव-कृत उपसर्ग (आपत्ति) आदि का सहन करने वाला हो, सम्पूर्ण सत्रह भेद सहित संयम-क्रियाओं का पालन करने वाला हो, बारह प्रकार के तप का साधन करने वाला हो और निरन्तर यत्न-शील हो उसी को अवधि-ज्ञान होता है / इस अवधि-ज्ञान के द्वारा वह समग्र लौकिक मूर्त पदार्थों को देखता है और उससे उसके चित्त में शान्त-रसमयी समाधि का सञ्चार होता है | किन्तु यह बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए कि उक्त-गुण-सम्पन्न व्यक्ति को ही अवधि-ज्ञान और उसकी सहायता से पैदा होने वाली समाधि की प्राप्ति हो सकती है, अतः उक्त गुणों के सञ्चय के लिए पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए / अब सूत्रकार अवघि-दर्शन का विषय वर्णन करते हैं:तवसा अवहट्टुलेस्सस्स दंसणं परिसुज्झइ / उड्ढे अहे तिरियं च सव्वमणुपस्सति / / 6 / / तपसापहृत-लेश्यस्य दर्शनं परिशुद्ध्यति / . .. ऊर्ध्वमधस्तिर्यक् च सर्वमनुपश्यति / / 6 / / पदार्थान्वयः-तवसा-तप से अवहट्टु-लेस्सस्स-जिसने कृष्णादि अशुभ लेश्याओं को नाश या दूर किया हो उसका दंसणं-अवधि-दर्शन परिसुज्झइ-शुद्ध (निर्मल) हो जाता है और फिर वह उड्ढं-ऊर्ध्व-लोक अहे-अधोलोक च-और तिरियं-तिर्यक-लोक में रहने वाले जीवादि पदार्थों को सव्-सब प्रकार से अणुपस्सति-देखता है / मूलार्थ-जिसने अशुभ लेश्याओं को तप से दूर किया है उसका अवधि-दर्शन निर्मल हो जाता है और फिर वह ऊर्ध्व-लोक, अधो-लोक और तिर्यक्-लोक में रहने वाले जीवादि पदार्थों को सब तरह से देखने लगता है / . टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि जिस व्यक्ति ने कृष्णादि अशुभ लेश्याओं को आत्म-प्रदेशों से दूर कर तप द्वारा उनकी शुद्धि की हो उसके आत्मा का अवधि-दर्शन निर्मल हो जाता है और उस दर्शन की सहायता से वह ऊर्ध्व लोक, .अधोलोक और तिर्यक् लोक में रहने वाले जीवादि पदार्थों के स्वरूप को सब तरह से -