________________ ___148 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् पंचमी दशा और तप तथा संयम के शुभ फल दिखाती है / उनके सामने देवता नृत्य आदि क्रियाएं करते हैं / इससे चित्त में समाधि आती है और प्रसन्नता होती है, क्योंकि देवों का जैसा वर्णन शास्त्रों से श्रवण किया जाता है वैसा ही यदि आंखो के सामने आ जाय तो चित्त अनायास ही उनकी ओर झुक कर समाधि प्राप्त करेगा / अतः सिद्ध हुआ कि देव-दर्शन की इच्छा करने वाले व्यक्ति को सब से पहिले पूर्वोक्त सब गुण धारण करने चाहिएं, क्योंकि यह सर्व-सम्मत है कि साधनों के होने पर ही साध्य की प्राप्ति हो सकती है / इस समाधि के प्रकरण से ही बहुत से लोगों ने भगवद्-दर्शन और ईश्वर-दर्शन की भी कल्पना की है किन्तु वह वास्तव में देव-दर्शन ही होता है / - संस्कृतानुवाद में प्रकरण को देखकर दूसरे पाद का अनुवाद 'विविक्त-शयनासनस्य' होता तो अच्छा था किन्तु हमने उसका यहां पर केवल अक्षरानुवाद ही कर दिया है / इसी प्रकार अन्यत्र जहां कही ऐसा हो गया हो पाठकों को स्वयं देख लेना चाहिए / / ___ अब सूत्रकार अवधि-ज्ञान का विषय वर्णन करते हैं: सव्व-काम-विरत्तस्स खमणो भय-भेरवं / तओ से ओही भवइ संजयस्स तवस्सिणो / / 5 / / सर्व-काम-विरक्तस्य क्षमणस्य भय-भैरवे / / ततस्तस्यावधिर्भवति संयतस्य तपस्विनः / / 5 / / पदार्थान्वयः-सव्व-सर्व काम-भोग-इच्छा से विरत्तस्स-निवृत्ति करने वाले / भय-भयोत्पादक भेरवं–भयावह परिषहों (अकस्मात् आ पड़ने वाली विपत्ति, भूख प्यास आदि) के खमणो-सहन करने वाले तओ-तदनु संजयस्स-निरन्तर संयम करने वाले और तवस्सिणो-तप करने वाले से-उन मुनि को ओही-अवधि-ज्ञान भवइ-उत्पन्न हो जाता है | ... मूलार्थ-सम्पूर्ण इन्द्रिय सुख की इच्छाओं से विरत, भयङ्कर से भयङ्कर कष्टों के सहन करने वाले, निरन्तर यत्न और संयम के पालन करने वाले और तप करने वाले मुनि को अवधि-ज्ञान हो जाता है / टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि इस लोक और परलोक से सम्बन्ध करने वाले जिस व्यक्ति ने रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द सम्बन्ध पांच काम-भोगों की ,