________________ new दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् तृतीय दशा सूत्र में दिये हुए “खद्धं खद्धं का निम्नलिखित अर्थ है: "अत्यन्तं परुषेण बृहता स्वरेण प्रचुरं रात्निकं भाषमाणः” अर्थात् रात्निक को अतयन्त कठोर और प्रमाण से अधिक शब्दों से ऊंचे स्वर में आमन्त्रित करने वाला | 'समवायाङ्ग सूत्र' में भी इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा गया है-"रत्नाकरं प्रति तत्समक्षं वा बृहता शब्देन बहुधा भाषमाणस्य अर्थात् रत्नाकर के साथ बड़े-बड़े शब्दों में तथा अधिक बोलने वाला। अतः सिद्ध हुआ कि रत्नाकर को पूज्याह तथा प्रेम–पूर्ण शब्दों से ही आमन्त्रित करना चाहिए। अब सूत्रकार पुनः उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते हैं: सेहे रायणियं तज्जाएणं तज्जाएणं पडिहणित्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 24 / / शैक्षो रात्निकं तज्जातेन-तज्जातेन प्रतिहन्ता (प्रतिभाषिता) भवत्याशातना शैक्षस्य / / 24 / / ___पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियं-रत्नाकर को तज्जाएणं-उसी के वचनों से पडिहणित्ता–प्रतिभाषण करे (उत्तर दे) तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा आशातना भवइ-होती मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर के वचनों से ही उसका तिरस्कार करे तो शिष्य को आशातना लगती है / ___टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि गुरू शिष्य को जो कुछ भी शिक्षा दे शिष्य उस (शिक्षा) को सादर ग्रहण करे, किन्तु गुरू के वाक्यों से ही उसका तिरस्कार न करे | जैसे-गुरू ने शिक्षा दी कि प्रत्येक साधु को ग्लान (थके हुए या दुःखित व्यक्ति) की सेवा करनी चाहिए तथा कभी आलस्य नहीं करना चाहिए या “गुरू जी महाराज! आप स्वयं ग्लान की सेवा क्यों नहीं करते और स्वयं आलस्य क्यों करते हैं ?" या "आप ही स्वाध्याय क्यों नहीं करते?" तो उसको आशातना लगती है। - सूत्र में आए हुए तज्जातेन” शब्द का तात्पर्य है कि गुरू के वचन से ही उसके पक्ष की अवहेलना करने के लिए तर्काभाष करना जिससे उसका उपहास हो / .