________________ तृतीय दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियं रत्नाकर को तुमति “तू ऐसा वत्ता-कहकर बुलावे तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना भवइ-होती है | - मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर को यदि 'तू' कहे तो उसको आशातना लगती है। टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि शिष्य जब कभी रत्नाकर या गुरू को आमन्त्रित करे तो बहुवचन से ही करे क्योंकि अपने से बड़ों का सदा आदर करना चाहिए, और आदर में सदा बहुवचन का ही प्रयोग होता है / यदि गुरू को कोई शिष्य एकवचन से आमन्त्रित करे तो उसको आशातना लगती है। ___ अतः “कस्त्वं मम प्रेरणायाम् (तू मुझको प्रेरणा करने वाला कौन होता है) इत्यादि असभ्यता-सूचक वाक्यों का प्रयोग कभी गुरू के लिए न करे, प्रत्युत आदरपूर्वक विनीत-वचनों से ही उनको बुलावे / . अब सूत्रकार फिर उक्त विषय की ही आशातना कहते है: सेहे रायणियं खलु खलु वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 23 / / . शैक्षो रात्निकं प्रचुरं-प्रचुरं वक्ता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 23 / / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियं-रत्नाकर को खद्धं खद्धं-अत्यन्त कठोर तथा प्रमाण से अधिक शब्दों से वत्ता-बुलावे तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा आशातना भवइ-होती है। मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर को अत्यन्त कठोर तथा प्रमाण से अधिक वाक्यों से आमन्त्रित करे तो उसको आशातना लगती है। - टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि यदि शिष्य रत्नाकर को आमन्त्रित करना चाहे तो उसको उचित है कि बहुमान-पूर्वक अत्यन्त मृदु तथा प्रमाणोचित शब्दों से ही आमन्त्रित करे | यदि वह धृष्टता से कठोर और प्रमाण से अधिक शब्दों से आमन्त्रित करता है तो उसको आशातना लगती है /