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________________ 100 1 78 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् तृतीय दशा टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि जब गुरू शिष्य को आमन्त्रित करे तो उस (शिष्य) को उचित है कि अपने स्थान से उठकर गुरू के पास जावे और सत्कार-पूर्वक उनकी आज्ञा सुने न कि कार्य करने के भय से अपने स्थान पर बैठा हुआ सुनता रहे | यदि ऐसा करेगा तो उसको आशातना लगेगी / हाँ, कोई विशेष कारण हो जाये तो इस का अपवाद भी हो सकता है, किन्तु ध्यान रहे कि वह कारण भी गुरू को निवेदन करना पड़ेगा अन्यथा आशातना से नहीं बच सकता / वृत्तिकार ने भी लिखा है-“कायिक्यां गतो भाजन-हस्तो वा भुज्ञानो यदि न ब्रूते . तदा न दोषः / अब सूत्रकार उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते है:सेहे रायणियस्स किंति वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 21 / / शैक्षो रात्निकस्य "किमिति" वक्ता भवत्याशातना शैक्षस्य ||21 / / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रत्नाकर को किंतिवत्ता-"क्या कहते हैं" कहे तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना भवइ-होती है / ___ मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर के बुलाने पर "क्या कहते हैं" कहे तो उसको आशातना लगती है। टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि यदि गुरू शिष्य को बुलावे तो उसको गुरू के वाक्य भक्ति और विनयपूर्वक सुनने चाहिए / यदि वह ऐसा नहीं करता तो उसको आशातना लगती है / जैसे-यदि किसी समय गुरू शिष्य को बुलावे तो शिष्य को अनवधान्ता से “क्या कहते हो” या “क्या कहता है' कदापि नहीं कहना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार कहने से एक ता विनय-भङ्ग होता है, दूसरे कहने वाले की अयोग्यता और असभ्यता प्रकट होती है / अतः बुलाने पर विनयपूर्वक गुरू के समीप जाकर ही उनके वाक्य ध्यान देकर सुनने चाहिए, तथा उनकी आज्ञा का यथोचित रीति से पालन करना चाहिए, इसी में श्रेय है। अब सूत्रकार फिर उक्त विषय की ही आशातना कहते हैं:सेहे रायणियं तुमंति वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 22 / / / शैक्षो रात्निकं "त्व" इति वक्ता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 22 / /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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