________________ ना है तृतीय दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 77 शैक्षो रात्निकस्य व्याहरताऽप्रतिश्रोता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 16 / / ___पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रत्नाकर के वाहरमाणस्स-आमन्त्रित करने पर अपडिसुणित्ता-वचन को सुनता ही नहीं तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना भवइ-होती है। मूलार्थ-रत्नाकर के आमन्त्रित करने पर यदि शिष्य ध्यान-पूर्वक नहीं सुनता है तो उसको आशातना लगती है। टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि यदि रत्नाकर किसी शिष्य को बुलावे और वह उसकी बात को ध्यान से न सुने तो उसको आशातना लगती है / जैसे-रत्नाकर ने किसी कारण से शिष्य को बुलाया, शिष्य ने अपने मन में विचार किया कि यदि मैं प्रत्युत्तर न दूं तो गुरू जी समझ लेंगे कि कोलाहल के कारण न सुन सका और रात्रि में चुप रहने से विचार लेंगे कि. सो रहा है / अतः मौन धारण ही अच्छा है इस प्रकार विचार करके वास्तव में मौन धारण कर ले तो उसको आशातना लगेगी / - सिद्ध यह हुआ कि ऐसी छल-युक्त क्रियाएं कभी न करनी चाएं अपितु सदैव प्रसन्तापूर्वक गुरू की आज्ञा पालन करनी चाहिए / वक्ष्यमाण सूत्र में सूत्रकार उक्त विषय की ही आशातना कहते हैं:. सेहे रायणियस्स वाहरमाणस्स तत्थ गए चेव पडिसुणित्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 20 / / शैक्षो रात्निकस्य व्याहरतस्तत्रगत (स्थितः) एव प्रतिश्रोता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 20 / / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रत्नाकर के वाहरमाणस्स-आमन्त्रित करने पर तत्थ गए चेव-वहां पर बैठा हुआ ही पडिसुणित्ता-वचन को सुनता है तो सेहस्स-शिष्या को आसायणा-आशातना भवइ-होती है / मूलार्थ-रत्नाकर के बुलाने पर शिष्य यदि अपने स्थान में बैठा हुआ ही उनके वाक्य को सुने तो उसको आशातना लगती है।