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________________ wo तृतीय दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 817 अब सूत्रकार उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते हैं: सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स इति एवं वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 25 / / शैक्षो रात्निकस्य कथां कथयतः 'इति' एवं वक्ता भवत्याशातना शैक्षस्य / / 25 / / . पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रन्ताकर के कह-कथा कहेमाणस्स कहते हुए इति-अमुक पदार्थ का स्वरूप इस प्रकार कहो एवं-इस प्रकार वत्ता-कहे तो सेहस्स-शिष्य को आशातना-आशातना भवइ-होती है। मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर के कथा कहते हुए बीच ही में बोल उठे "अमुक पदार्थ का स्वरूप इस प्रकार कहिए" तो शिष्य को आशातना होती है। टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि यदि गुरू कथा करते हुए किसी पदार्थ का स्वरूप संक्षेप में कहता हो ओर शिष्य बीच ही में बोल उठे कि आपको इस पदार्थ का स्वरूप इस तरह कहना चाहिए, क्योंकि इस पदार्थ का वास्तविक स्वरूप यही है जो कुछ मैं कहता हूँ, तो उसको (शिष्य को) आशातना लगती है, क्योंकि इससे उसका अभिप्राय जनता पर अपनी बुद्धिमत्ता प्रकट करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं / ध्यान रहे कि इस तरह की अन्य क्रियाओं के करने से भी शिष्य आशातना का भागी होता है, यह उपलक्षण से जानना चाहिए। अतः शिष्य को कोई भी ऐसा कार्य न करना चाहिए जिससे किसी प्रकार भी गुरू का अपमान हो, प्रत्युत गुरू के सामने सदा विनीत बने रहना चाहिए और उसका सदा बहुमान करना चाहिए / अब सूत्रकार फिर उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते हैं: सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स नो सुमरसीति वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स / / 26 / /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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