________________ तयाणंतरं च णं तदनन्तर, वाहणविहिपरिमाणं वाहन विधि का परिमाण, करेइ किया, चउहि वाहणेहिं दिसायत्तिएहिं—चार वाहन यात्रा के, चउहि वाहणेहिं संवाहणिएहिं—चार वाहन माल ढोने के, नन्नत्थ सिवाय, अवसेसं सव्वं अन्य सब, वाहणविहिं वाहन विधि का, पच्चक्खामि—प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ तदनन्तर इच्छाविधि का परिमाण करते हुए आनन्द ने हिरण्य सुवर्ण (सोने की मुद्रा) की मर्यादा की और निश्चय किया कि कोष में निहित चार हिरण्य कोटि, व्यापार में प्रयुक्त चार हिरण्यकोटि और गृह तथा गृहोपकरण सम्बन्धी चार हिरण्यकोटि के, इस प्रकार बारह कोटि के अतिरिक्त हिरण्य सुवर्ण संग्रह करने का परित्याग करता हूं। इसके पश्चात् चतुष्पद अर्थात् पशु सम्बन्धी मर्यादा की प्रत्येक में दस हजार गौओं वाले ऐसे चार गोकुलों के सिवाय अन्य पशु संग्रह का प्रत्याख्यान किया। तदनन्तर क्षेत्रवास्तु का परिमाण किया और सौ बीघा भूमि का एक हल, इस प्रकार के पांच सौ हलों के सिवाय शेष क्षेत्रवास्तु का प्रत्याख्यान किया। उसके पश्चात् बैल गाड़ियों का परिमाण किया और पांच सौ शकट यात्रा के लिए और पांच सौ शकट माल ढोने के रखे। इसके अतिरिक्त अन्य शकट रखने का परित्याग किया। तदनन्तर वाहनों, नौकाओं अर्थात् जलयानों का परिमाण किया। चार माल ढोने की तथा चार यात्रा की नौकाओं के सिवाय अन्य नौकाओं के रखने का प्रत्याख्यान किया। __टीका प्रस्तुत व्रत का नाम इच्छाविधि परिमाण दिया गया है। इसका अर्थ है कि सम्पत्ति सम्बन्धी इच्छा को मर्यादित करना। समाज, शान्ति-व्यवस्था और परस्पर शोषण को रोकने के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्योंकि इच्छाओं की अनर्गल वृद्धि से ही राष्ट्रों में संघर्ष उत्पन्न होते हैं। इस व्रत को परिग्रह परिमाण व्रत भी कहा जाता है। इसका अर्थ है—सम्पत्ति की मर्यादा / यह नाम संग्राह्य वस्तु की दृष्टि से है और इच्छाविधि के रूप उपर्युक्त नाम संग्राहक के मनोभावों की दृष्टि से है। जहां तक चारित्र का प्रश्न है इच्छा परिमाण अधिक उपयुक्त है। इसका अर्थ है, सम्पत्ति रखना अपने आप में बुरा नहीं है। एक व्यक्ति किसी संस्था का संचालक होने के नाते करोड़ों की सम्पत्ति रख सकता है। बुरा है उस सम्पत्ति के प्रति इच्छा या ममत्व का होना। .. प्रस्तुत सूत्र में गो पद केवल गाय का वाचक नहीं है। घोड़े-बैल आदि अन्य पशु भी इसके अन्तर्गत हैं। गाय की मुख्यता होने के कारण पशुधन का परिमाण उसी के द्वारा किया जाता है। ___ आनन्द के पास दस-दस हजार गौओं वाले चार व्रज थे। इससे ज्ञात होता है कि तत्कालीन भारत में पशुधन सम्पत्ति का प्रमुख अङ्ग था। गाय दूध, दही और घी आदि के रूप में सात्विक एवं / श्री उपांसक दशांग सूत्रम् / 63 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन