________________ शब्दार्थ तयाणंतरं च णं तदनन्तर, सदारसंतोसीए—स्वदार सन्तोष सम्बन्धी व्रत के सम्बन्ध में, परिमाणं करेइ परिमाण किया, नन्नत्थ एक्काए सिवानंदाए भारियाए—एक शिवानन्दा भार्या के अतिरिक्त, अवसेसं—अवशिष्ट, सव्वं मेहुणविहि-सब प्रकार के मैथुन सेवन का, पच्चक्खामि प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ तत्पश्चात् आनन्द ने स्वदार सन्तोष सम्बन्धी व्रत को स्वीकार किया और यह मर्यादा स्वीकार की कि शिवानन्दा नामक विवाहित पत्नी के अतिरिक्त अन्यत्र मैथुन सेवन का प्रत्याख्यान करता हूं। टीका प्रस्तुत व्रत में योग और करण का उल्लेख नहीं किया गया। आवश्यक सूत्र में केवल एक करण एक योग का उल्लेख है। इसका अर्थ है श्रावक मर्यादित क्षेत्र से बाहर केवल काया से स्वयं मैथुन सेवन का परित्याग करता है। गृहस्थ जीवन में सन्तान आदि का विवाह करना आवश्यक हो जाता है। इसी प्रकार पशुपालन करने वाले के लिए उनका परस्पर सम्बन्ध कराना भी अनिवार्य हो जाता है। अतः इसमें दो करण और तीन योग न कहकर श्रावक की अपनी परिस्थिति एवं सामर्थ्य पर छोड़ दिया है। जो श्रावक घर के बाहर उत्तरदायित्व से निवृत्त हो चुका है, वह यथाशक्ति पूर्ण ब्रह्मचर्य की ओर बढ़ सकता है। पञ्चम इच्छा परिमाण व्रत__ मूलम् तयाणंतरं च णं इच्छाविहिपरिमाणं करेमाणे हिरण्णसुवण्णविहि परिमाणं करेइ, नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं निहाण पउत्ताहिं, चउहिं बुडि पउत्ताहिं, चउहिं पवित्थर पउत्ताहिं, अवसेसं सव्वं हिरण्ण सुवण्णविहिं पच्चक्खामि // 17 // तयाणंतरं च णं चउप्पय विहि परिमाणं करेइ, नन्नत्थ चउहिं वएहिं दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहिं पच्चक्खामि // 18 // तयाणंतरं च णं खेत्त-वत्थु विहि परिमाणं करेइ, नन्नत्थ पंचहिं हलसएहिं नियत्तण-सइएणं हलेणं अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थु विहिं पच्चक्खामि // 16 // तयाणंतरं च णं सगडविहि परिमाणं करेइ, नन्नत्थ पंचहिं सगडसएहिं दिसायत्तिएहिं, पञ्चहिं सगडसएहिं संवाहणिएहिं, अवसेसं सव्वं सगडविहिं पच्चक्खामि // 20 // तयाणंतरं च णं वाहणविहि परिमाणं करेइ, नन्नत्थ चउहिं वाहणेहिं दिसायत्तिएहिं, चउहिं वाहणेहिं संवाहणिएहिं, अवसेसं सव्वं वाहणविहिं पच्चक्खामि // 21 // छाया—तदनन्तरं च खलु इच्छाविधि परिमाणं कुर्वन् हिरण्यसुवर्णविधि परिमाणं करोति / | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 61 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन