________________ द्वितीय सत्य व्रत मूलम् तयाणंतरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा // 14 // छाया तदनन्तरं च खलु स्थूलकं मृषावादं प्रत्याख्याति, यावज्जीवं द्विविधं त्रिविधेन न करोमि, न कारयामि, मनसा, वचसा, कायेन। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं और उसके अनन्तर, थूलगं मुसावायं स्थूल मृषावाद का, पच्चक्खाइ -प्रत्याख्यान किया, जावज्जीवाए यावज्जीवन, दुविहं तिविहेणं दो करण तीन योग से, न करेमि–न करूंगा, न कारवेमि—न कराऊंगा, मणसा—मन से, वयसा वचन से, कायसा—शरीर से / ___ भावार्थ इसके बाद आनन्द ने मृषावाद का प्रत्याख्यान किया कि यावज्जीवन दो करण तीन योग से अर्थात् मन से, वचन से और काय से स्थूल मृषावाद का प्रयोग न स्वयं करूंगा और न दूसरों से कराऊँगा। तृतीय अस्तेय व्रत मूलम् तयाणंतरं च णं थूलगं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा // 15 // छाया तदनन्तरं च खलु स्थूलकं अदत्तादानं प्रत्याख्याति यावज्जीवं द्विविधं त्रिविधेन न करोमि न कारयामि, मनसा वचसा कायेन। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं तदनन्तर, थूलगं अदिण्णादाणं स्थूल अदत्तदान का, पच्चक्खाइ–प्रत्याख्यान किया कि, जावज्जीवाए यावज्जीवन, दुविहं तिविहेणं दो करण तीन योग से अर्थात्, न करेमि–स्थूल चोरी न करूँगा, न कारवेमि—न कराऊँगा, मणसा—मन से, वयसा वचन से, कायसा और शरीर से, | ___ भावार्थ इसके बाद आनन्द ने स्थूल अदत्तादान अर्थात् चौर्य का प्रत्याख्यान किया कि यावज्जीवन दो करण तीन योग से अर्थात् मन से, वचन से और काय से स्थूल चोरी न करूंगा और न कराऊँगा। चतुर्थ स्वदारसंतोष व्रत मूलम् तयाणंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ, नन्नत्थ एक्काए सिवानंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खामि // 16 // छाया तदनन्तरं च खलु स्वदारसान्तोषिके परिमाणं करोति, नान्यत्र एकस्याः शिवानन्दाया भार्याया अवशेषं सर्वं मैथुनविधिं प्रत्याख्यामि / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 60 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन .