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________________ यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन सप्तमस्य अंगस्य उपासकदशानां दश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, प्रथमस्य खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? शब्दार्थ तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस काल और उस समय, अज्ज सुहम्मे–आर्य सुधर्मा स्वामी, समोसरिए—चम्पा नगरी में आये, जाव यावत्, जम्बू पज्जुवासमाणे—जम्बू स्वामी ने उनकी उपासना करते हुए, एवं वयासी—यह कहा—जइ णं भन्ते ! हे भदन्त ! यदि, समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तेणं श्रमण भगवान् महावीर ने यावत् जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, छट्ठस्स अंगस्स नायाधम्मकहाणं—ज्ञाताधर्मकथा नामक छठे अङ्ग का, अयमढे पण्णत्ते—यह अर्थ कहा है तो, सत्तमस्स णं भन्ते ! अंगस्स उवासगदसाणं हे भगवन् ! उपासकदशा नामक सप्तम अङ्ग का, समणेणं जाव संपत्तेणं-मोक्ष स्थित श्रमण भगवान महावीर ने, के अट्ठे पण्णत्ते क्या अर्थ बताया है ? एवं खलु जम्बू ! हे जम्बू ! इस प्रकार, समणेणं जाव सम्पत्तेणं मोक्षस्थित श्रमण भगवान् महावीर ने, सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं—उपासकदशा नामक सप्तम अङ्ग के, दस अज्झयणा पण्णत्ता दश अध्ययन कहे हैं, तं जहा—वे इस प्रकार हैं—आणंदे—आनन्द, कामदेवे य—और कामदेव, गाहावइचुलिणीपिया—गाथापति चुलिनीपिता, सुरादेवे—सुरादेव, चुल्लसयए-चुल्लशतक, गाहावइकुण्डकोलिए—गाथापति कुण्डकौलिक, सद्दालपुत्ते सद्दालपुत्र, महासयए—महाशतक, नन्दिणीपिया—नन्दिणीपिता, सालिहीपिया और सालिहीपिता। __जइ णं भंते ! जम्बू स्वामी ने पूछा हे भगवन् ! यदि, समणेणं जाव सम्पत्तेणं—मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने, सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं सप्तम अंग उपासकदशा के, दस अज्झयणा पण्णत्ता— दस अध्ययन प्रदिपादन किये हैं, पढमस्स णं भंते ! –तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का, समणेणं जाव सम्पत्तेणं-मोक्ष स्थित श्रमण भगवान् महावीर ने, के अढे पण्णत्ते क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? भावार्थ-उस.काल तथा उस समय आर्य सुधर्मा स्वामी चम्पा नगरी में आये। जम्बू स्वामी ने उनकी उपासना करते हए पछा हे भगवन ! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने छठे अङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का जो भाव बताया है उसे मैं सुन चुका हूँ। हे भगवन् ! मोक्ष स्थित श्रमण भगवान् महावीर ने सातवें अंग उपासकदशा का क्या भाव बताया है ? आर्य सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया हे जम्बू ! मुक्ति प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सातवें अङ्ग उपासकदशा के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। वे इस प्रकार हैं—१. आनन्द, 2. कामदेव, 3. गाथापति चुलिनीपिता, 4. सुरादेव, 5. चुल्लकशतक, 6. गाथापति कुण्डकौलिक, 7. सद्दालपुत्र, 8. महाशतक, 6. नन्दिनीपिता और 10. शालिहीपिता। जम्बू स्वामी ने फिर पूछा हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने सप्तम अङ्ग उपासकदशा | . श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 73 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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