________________ सुन्दर, सरल और सरस भाषा में व्याख्या करके उन्होंने जनता का महान् उपकार किया है। स्वाध्याय प्रेमी जनों के लिए उन्होंने आगम के रहस्य को समझने के लिए एक सरल मार्ग बना दिया है। जो कुछ भी और जितना भी ज्ञान उन्होंने अपने गुरु से प्राप्त किया था, उसे अपने स्वयं के श्रम से पल्लवित करके जन-जन के जीवन की भूमि में उन्होंने उसे मुक्त हस्त बिखेर दिया था। कोई भी ज्ञान पिपासु उनके द्वार पर आकर प्यासा नहीं लौटता था। अतः आचार्य श्री जी अपने युग के एक प्रकाश स्तम्भ थे। उनका जीवन एक ज्योतिर्मय जीवन था, जिससे हजारों-हजार लोगों ने प्रेरणा एवं स्फूर्ति प्राप्त की eft-In him was a life and the life was the light of men. ___ आचार्य श्री जी क्या थे? ज्ञान के सागर और शान्ति के अग्रदूत / वे अपने शान्ति के पथ पर निरंतर आगे ही बढ़ते रहे। संघ-हित में वे सदा अभय होकर अग्रसर होते रहे। संघ को वे व्यक्ति से अधिक पूज्य एवं श्रेष्ठ मानते थे। यही कारण है कि संघ सेवा में उन्होंने कभी प्रमाद नहीं किया। ___आचार्य श्री जी का जीवन बाल्य काल से ही ज्ञान-साधना में संलग्न रहा। उन्होंने अपनी सहज एवं तीव्र बुद्धि से अल्प काल में ही संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश जैसी कठिन प्राचीन भाषाओं को सहज ही सीख लिया। प्राकृत भाषा पर तो आपका असाधारण अधिकार था। प्राकृत भाषा में आप निबन्ध भी लिखते रहते थे। स्थानकवासी समाज में प्राकृत, संस्कृत के अध्ययन की ओर सबसे पहले आपने ही ध्यान खींचा था। आगमों का गम्भीर और सर्वांगीण अध्ययन कर आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना के अतिरिक्त आपने अनेक आगमों की हिन्दी भाषा में व्याख्या कर स्वाध्याय प्रेमियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। आज भी आपके सभी व्याख्या ग्रन्थ समाज में बड़े आदर के साथ पढ़े जाते हैं। दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि आगम ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हो चुके हैं। आपकी व्याख्या शैली अत्यन्त सुन्दर, सरल और सरस होती है, जिससे साधारण पाठक भी लाभ उठा सकता है। अब उपासकदशाङ्ग सूत्र का प्रकाशन हो रहा है। प्रस्तुत आगम में भगवान महावीर के दश प्रमुख श्रावकों के जीवन का सुन्दर वर्णन किया है। आनन्द श्रावक के जीवन में श्रावक के द्वादश व्रतों का बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। आशा है कि अन्य आगमों की भांति इसका प्रकाशन भी बहुत सुंदर होगा। आचार्य श्री जी के अन्य आगम भी यथासम्भव शीघ्र ही प्रकाशित होने चाहिएं। क्या ही अच्छा हो यदि आचार्य श्री जी के समस्त ग्रन्थों का नवीन शैली में सुन्दर प्रकाशन हो सके। इससे पाठकों का बड़ा हित होगा। ' आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज ने केवल श्रुत सेवा ही नहीं की, बल्कि समाज सेवा भी की है। पंजाब सम्प्रदाय के पहले वे उपाध्याय थे, फिर पंजाब संघ के आचार्य बने / सादड़ी सम्मेलन में सबने मिलकर उनको आचार्य पद पर आसीन किया था / श्रमण संघ के आचार्य पद पर रहकर आपने | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 67 / आचार्य श्री की श्रुत साधना