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________________ प्रथम संस्करण से आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म0 की श्रुत साधना मानव का जीवन एक सतत प्रवाहशील सरिता के समान है। यह विराट विश्व उस प्रवाह की आधार भूमि है। विश्व के इस आधार तल में ही जीवन की सरिता का प्रवाह प्रवहमान रहता है। जीवन और जगत दर्शन-शास्त्र के मुख्य विषय हैं। जीवन क्या है, जगत क्या है, और उन दोनों में क्या सम्बन्ध है, दर्शन-शास्त्र का यही प्रतिपाद्य विषय रहा है। जीवन चिन्तन का पूर्वगामी धर्म है और जगत जीवन का आवश्यक आधार है। प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के अनुसार दार्शनिक सम्पूर्ण जगत का द्रष्टा है। यदि जीवन के भौतिक धर्मों के परिपालन की विवशता को दार्शनिक-जीवन की सीमा कहा जाए, तो उक्त धर्मों का पालन करते हुए भी विचार और चिन्तन द्वारा उनका संस्कार और उस संस्कार के द्वारा मानवी संस्कृति का विकास करने का प्रयास दार्शनिक की विशेषता है। आचार्य सम्राट श्रद्धेय श्री आत्मारामजी महाराज अपने युग के एक गंभीर दार्शनिक विद्वान थे। वे समाज और राष्ट्र के केवल द्रष्टा ही नहीं रहे, बल्कि प्रेरक भी रहे हैं। जीवन और जगत की समस्याओं का गम्भीर अध्ययन करके उन्होंने उनमें सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न भी किया था। जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों में समन्वय साधने का प्रयास उन्होंने किया था। अपने युग के प्रसुप्त मानव को झकझोर कर उन्होंने जागृत किया था और कहा था-Stand up, be hold and be strong. उठो, वीर बनो और सुदृढ़ होकर जीवन के समर में खड़े हो जाओ। इस संसार में विजेता वही बनता है, जो अपने व्यतीत अतीत पर आंसू नहीं बहाता। हम बहुत विलाप कर चुके हैं। अब रोना बन्द करो और अपने पैरों पर खड़े होकर सच्चा इन्सान बनने का प्रयत्न करो-we have wept long enough, no more weeping, but stand on your feet and he men. आचार्य श्री जी अपने युग के एक महान् विद्वान और आगमों के व्याख्याकार थे। आग़मों पर श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 66 / आचार्य श्री की श्रुत साधना
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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