________________ जो संघ-सेवा की, वह सर्व विदित है। संघ को आपने एक सूत्र में बांधकर रखने का पूरा प्रयत्न किया। आप की संघ सेवा भी आपकी श्रुत-सेवा के समान सदा अजर-अमर रहेगी। मेरे-स्नेही स्वामी श्री रत्न मुनि जी आचार्य श्री जी के ग्रन्थों का प्रकाशन कर रहे हैं। उनकी यह श्रुत-भक्ति आचार्य श्री जी की सच्ची सेवा होगी। श्री रत्नमुनि जी ने अपने तन से और अपने मन से आचार्य श्री जी की सेवा, भक्ति और उपासना की है, वह उनके जीवन की एक महान् विशेषता है। मैं आशा करता हूं कि भविष्य में भी वे अपने इस सेवा पथ पर अग्रसर होते रहेंगे और आचार्य श्री जी के अमूल्य ग्रन्थों का प्रकाशन कराकर समाज में से ज्ञान की अमर ज्योति को बुझने न देंगे। विजय मुनि शास्त्री जैन भवन, लोहा मण्डी, आगरा श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 68 / आचार्य श्री की श्रुत साधना . .