________________ 另沃XXXXXXXXX%%%%%%%%%%% आचार्य श्री की कलम से 'श्री उपासक दशांग सूत्र' के प्रकाशन के पुण्य प्रसंग पर मैं हार्दिक-तोष अनुभव कर रहा हूं। 'आत्म-ज्ञान-शिव आगम प्रकाशन समिति' के सत्संकल्प का यह प्रथम | प्रकाशन है जो सर्वपक्षों से सुन्दर और समीचीन है। प्रस्तुत आगम के टीकाकार हैं, मेरे बाबा गुरु श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर "| आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज। इस सत्य से पूरा मुनि संघ और श्रावक संघ असंदिग्ध रूप से परिचित है कि पूज्य आचार्य श्री एक उच्चकोटि के धुरंधर विद्वान और आगम-महोदधि महापुरुष थे। संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश आदि प्राचीन भारतीय भाषाओं के घे अधिकारी विद्वान थे। वर्तमान में उपलब्ध समग्र श्रुत साहित्य का उन्होंने गहन गंभीर अध्ययन-मनन और पारायण किया था। यह कहना कथमपि अतिशयोक्ति नहीं होगा कि श्रमण परंपरा में वे आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य हरिभद्र और आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की उज्ज्वल परम्परा के संवाहक मनीषी आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन के पल-प्रतिपल को श्रुत-स्वाध्याय, श्रुत-चिन्तन और श्रुताराधना में समग्रतः अर्पित-समर्पित कर दिया था। परिणामतः अनेक आगमों पर उन्होंने बृहद् टीकाएं लिखीं। आगमों पर उनके द्वारा लिखी टीकाएं आज तक की | सबसे विशाल. सबसे स्पष्ट और सरल टीकाएं हैं। विद्वत्ता प्रदर्शन उनका लक्ष्य नहीं था। उनका तो यही लक्ष्य था कि आगम सर्वगम्य बन सकें, विज्ञ और अज्ञ पाठक समान रूप से उन्हें हृदयंगम कर सकें। आचार्य श्री अपने इस लक्ष्य में निश्चित रूप से पूर्ण सफल रहे हैं। अल्पज्ञ पाठक भी उनकी टीकाओं को सहज ही हृदयंगम कर लेते हैं। उनकी इस सफलता का प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने जो भी लिखा अपनी कलम से लिखा, अपने अनुभव और अपनी भाषा में लिखा। उनकी कलम से निसृत साहित्य को परिमाण की दृष्टि से देखा जाए तो बुद्धि हैरत में पड़ जाती है / आचार्य श्री ने जो भी लिखा उसका मूल आधार आगम ही रहा। आगमटीकाओं के अतिरिक्त उन द्वारा लिखित अन्य ग्रन्थ भी आगमों के ही आधार पर लिखे KRRRRRRRRRRRRRRRR