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________________ * * * * * * * * * * * गए हैं। इससे उनकी आगम-निष्ठा का सहज ही पता चल जाता है। प्रस्तुत संदर्भ में मैं यह भी कहना चाहूंगा कि वे केवल आगमों के व्याख्याकार ही नहीं थे, बल्कि आगमों के सत्य को अपने प्राणों और श्वासों में जीने वाले महापुरुष थे। निश्चित ही वे एक आगम-पुरुष थे। उनके शब्द-शब्द और अक्षर-अक्षर में उनकी अक्षर-साधुता ध्वनित होती है। __ पूज्य आचार्य श्री का कुछ साहित्य उनके जीवन काल में भी प्रकाशित हुआ। उनके स्वर्गवास के पश्चात् भी कुछ साहित्य प्रकाशित हुआ। पंजाब-प्रवर्तक उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द जी महाराज, पंडित रत्न श्री हेमचन्द्र जी महाराज, गुरुदेव श्री ज्ञान मुनि जी महाराज, संयम प्राण श्री रत्नमुनि जी महाराज, प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचन्द जी महाराज, श्री अमर मुनि जी महाराज आदि विद्वद्वरेण्य पूज्य मुनीश्वरों ने आचार्य श्री के श्रुत-साहित्य को सम्पादित, संकलित करके समय-समय पर प्रकाशित कराके श्रुतसेवा के महनीय अनुष्ठान किए हैं। ये सभी कार्य स्तुत्य और अनुकरणीय हुए हैं। पर यह खेद का विषय है कि आचार्य श्री जी के देवलोक गमन के लगभग तीन दशकों के पश्चात् भी उनका पूरा साहित्य प्रकाशित नहीं हो पाया है। आचार्य श्री जी का समग्र साहित्य संघ और समाज के समक्ष आए ऐसा मेरा संकल्प है। इसके लिए समय शक्ति, संकल्प और निष्ठा की अपेक्षा है। समाज के कुछ अग्रगण्य श्रावकों ने इस दिशा में अपने संकल्प और समर्पण को प्रस्तुत किया है और 'आत्म-ज्ञान-शिव आगम प्रकाशन समिति' का गठन करके आचार्य श्री के अप्राप्त और अप्रकाशित साहित्य के प्रकाशन का बीड़ा उठाया है। संघ की शक्ति अपरिमित होती है। निश्चित ही हम सा संघशक्ति के बल पर आचार्य श्री के समग्र साहित्य को संघ सेवा में क्रम से प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त करेंगे। ___ 'श्री उपासकदशांग सूत्र' में भगवान महावीर कालीन दस श्रावकों के जीवनों का वर्णन है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए उन श्रावकों ने अपने जीवन को कैसे साधा था और कैसे उत्कट आत्मसाधना से अध्यात्म के शिखरों पर आरोहण किया था यही वर्णन प्रस्तुत आगम में अंकित है। श्रावकों के लिए यह आगम आवश्यक रूप से पठनीय और मननीय है। इसके पठन से श्रावकों को गृहस्थ जीवन में रहते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने की विधि ज्ञात होगी। 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 * * * * * * * * और कैसे उत्कट * * * 來來來來來來來來來來來來來來 .
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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