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________________ प्रवृत्तियां करता है और उनमें पृथ्वी, पानी, अग्नि आदि स्थावर जीवों की हिंसा होती ही रहती है। उस सूक्ष्म हिंसा का उसे त्याग नहीं होता। वह केवल स्थूल अर्थात् त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करता है। इस प्रकार श्रावक की चर्या में दो छूटे हैं। पहली अपराधी को दंड देने की और दूसरी सूक्ष्म हिंसा की। इसी आधार पर श्रावक के व्रतों को सागारी अर्थात् छूट वाले कहा जाता है, इसके विपरीत साधु को अनगार कहा जाता है। अहिंसा का विध्यात्मक रूप अहिंसा को जीवन में उतारने के लिए मैत्री भावना का विधान किया गया है। श्रावक प्रतिदिन यह घोषणा करता है—मैं सब जीवों को क्षमा प्रदान करता हूं, सब जीव मुझे क्षमा प्रदान करें, मेरी सब से मित्रता है, किसी से वैर नहीं है। इस घोषणा में श्रावक सर्वप्रथम स्वयं क्षमा प्रदान करता है और कहता है कि मुझसे किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है, मैं सबको अभय प्रदान करता हूं। दूसरे वाक्य द्वारा वह अन्य प्राणियों से क्षमा-याचना करता है और स्वयं निर्भय होना चाहता है। वह ऐसे जीवन की कामना करता है जहां वह शोषक न बने और न शोषित, न भयोत्पादक बने और न भयभीत और न त्रासक बने और न त्रस्त, न उत्पीड़क बने और न पीड़ित / तीसरे चरण में में वह सबसे मित्रता की घोषणा करता है। अर्थात् सबको समता की दृष्टि से देखता है। मित्रता का मूल आधार है प्रतिदान की आशा न रखते हुए दूसरे को अधिक-से-अधिक प्रदान करने की भावना / एक मित्र को दूसरे मित्र की सख-सविधा, आवश्यकता का जितना ध्यान रहता है. उतना अपना नहीं रहता। इसके विपरीत जब अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरे का हक छीनने की भावना आ जाती है तभी शत्रुता का मिश्रण होने लगता है। मित्रता की घोषणा द्वारा श्रावक अन्य सब प्राणियों का हितैषी एवं रक्षक बनने की प्रतिज्ञा करता है। चौथा चरण है, मेरा किसी से वैर नहीं है। वह कहता है—ईर्ष्या, द्वेष, मनोमालिन्य आदि शत्रुता के जितने कारण हैं, मैं उन सबको धो चुका हूं और शुद्ध एवं पवित्र हृदय लेकर विश्व के सामने उपस्थित होता हूं। जो व्यक्ति कम-से-कम वर्ष में एक बार इस प्रकार घोषणा नहीं करता, उसे अपने आपको जैन कहने का अधिकार नहीं है। यदि प्रत्येक व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र इस घोषणा को अपना ले तो विश्व की अनेक समस्याएं सुलझ जाएं। अहिंसा और कायरता अहिंसा पर प्रायः यह आक्षेप किया जाता है कि यह कायरता है। शत्रु के सामने आने पर जो व्यक्ति संघर्ष की हिम्मत नहीं रखता, वही अहिंसा को अपनाता है, किन्तु यह धारणा ठीक नहीं है। कायर वह होता है जो मन में प्रतिकार की भावना होने पर भी डरकर प्रत्याक्रमण नहीं करता है, ऐसे व्यक्ति का आक्रमण न करना या शत्रु के सामने झुक जाना अहिंसा नहीं है, वह तो आक्रमण से भी बड़ी हिंसा है। महात्मा गांधी का कथन है कि आक्रामक या क्रूर व्यक्ति विचारों में परिवर्तन होने पर अहिंसक बन सकता है किन्तु कायर के लिए अहिंसक बनना असम्भव है। अहिंसा की पहली शर्त श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 53 / प्रस्तावना
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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