________________ दी है। जिस प्रकार किसी मनुष्य को तपे हुए लोहे पर चलने के लिए कहा जाए तो वह डरते-डरते पैर रखता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव सांसारिक प्रपंचों में डरते-डरते घुसता है / 3. निर्वेद—सांसारिक भोगों के प्रति स्वाभाविक उदासीनता। 4. अनुकम्पा—संसार के सभी प्राणियों का दुख दूर करने की इच्छा। 5. आस्तिक्य—आत्मा आदि तत्त्वों के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास। सम्यक्त्व के भेद कारक, रोचक तथा दीपक यह बताया जा चुका है कि देव, गुरु और धर्म में दृढ़ श्रद्धा ही सम्यक्त्व है। विश्वास कई प्रकार का होता है। असली विश्वास वह है जो कार्य करने की प्रेरणा दे। हमें यदि विश्वास हो जाए कि जिस कमरे में हम बैठे हैं उसमें सांप है तो कभी निश्चिन्त होकर नहीं बैठ सकते। बार-बार चारों ओर दृष्टि दौड़ाते रहेंगे और पूरी तरह सावधान रहेंगे। कोशिश यह करेंगे कि जल्दी-से-जल्दी उस कमरे से बाहर निकल जाएं। इसी प्रकार जिस व्यक्ति में यह विश्वास जम गया कि सांसारिक काम-भोग दुर्गति में ले जाने वाले हैं तो वह कभी निश्चिन्त होकर नहीं बैठ सकता। वह कभी धन, सम्पत्ति, सन्तान आदि के मोह में नहीं फंस सकता / कर्त्तव्य बुद्धि से जब तक गृहस्थ अवस्था में रहेगा, निर्लेप होकर रहेगा। हमेशा यह भावना रखेगा कि इस प्रपंच से छुटकारा कब मिले। इस प्रकार की चित्तवृत्ति को सम्यक्त्व कहा जाता है। वह मनुष्य को कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। वहां सोचना और करना एक साथ चलते हैं। यही सम्यक्त्व मनुष्य को आगे बढ़ाता है। रोचक सम्यक्त्व कुछ लोगों का विश्वास रुचि उत्पन्न करके रह जाता है। ऐसे विश्वास वाला व्यक्ति धर्म में श्रद्धा करता है, धर्म की बातें सुनना उसे अच्छा लगता है। धार्मिक पुरुषों के दर्शन व धर्मचर्चा में आनन्द आता है, किन्तु वह कुछ करने के लिए तैयार नहीं होता। ऐसे सम्यक्त्व को रोचक सम्यक्त्व कहते हैं। दीपक सम्यक्त्व कुछ लोग श्रद्धावान् न होने पर भी दूसरों में श्रद्धा उत्पन्न कर देते हैं। ऐसा सम्यक्त्व दीपक सम्यक्त्व कहलाता है। वास्तव में देखा जाए तो यह मिथ्यात्व ही है। फिर भी दूसरों में सम्यक्त्व का उत्पादक होने से सम्यक्त्व कहा जाता है। सम्यक्त्व के पांच अतिचारऊपर बताया जा चुका है कि अंगीकृत मार्ग में दृढ़ विश्वास साधना की प्रथम भूमिका है। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 46 / प्रस्तावना