________________ 3. कार्षापण—(प्रा. काहावण) तीसरे प्रकार का सिक्का कार्षापण या काहावण कहा जाता था। बिम्बसार के समय राजगृह में इसका प्रचलन था। बुद्ध ने भी जहां रुपये पैसे की बात आई है कार्षापण उल्लेख किया है। येह तीन प्रकार का होता है—(१) सोने का बना हुआ, (2) चान्दी का बना हुआ, और (3) ताम्बे का बना हुआ। यह चौकोण होता था और वजन लगभग 146 रत्ती होता था (Rhys Davids-'Buddhist India') उत्तराध्ययन सूत्र (अ. 20 गाथा 42) में कूटकार्षापण का उल्लेख आया है। इससे ज्ञात होता है कि उन दिनों खोटा सिक्का भी प्रचलित था। 4. माषक (मास)—आजकल इसे मासा कहा जाता है। 5. अर्धमाषक—(अधमास)–आधा मासा / माषक का उल्लेख सूत्रकृताङ्ग (द्वितीय अध्ययन) तथा उत्तराध्ययन (अ. 8. गाथा 17) में आया है। जातकों में (1 पृ. 120, III पृ. 448) माषक तथा अर्धमाषक दोनों का उल्लेख मिलता है। खुद्दकपाठ की टीका मरमत्तथजोतिका में (1 पृ. 37) लौहमाषक, दारुमाषक तथा जतुमाषक का भी उल्लेख है। 6. रूवग (रुप्यक)—आजकल इसे रुपया कहा जाता है। आवश्यकचूर्णि में कूट रुप्यक अर्थात् खोटे रुपये का भी उल्लेख है। 7. पनिक (सं. पणिक)–संस्कृत में पण्य शब्द का अर्थ है बाजार में बिकने वाली वस्तुएं। इसी आधार पर दुकान को आपण कहा जाता है। इसका उल्लेख व्यवहार भाष्य (3 तथा 7-8) में आया है। कात्यायन के मतानुसार मासे को भी पण कहा जाता था और इसका वजन कार्षापण का 20 वां भाग होता था। 8. पायङ्कक—यह भी पण के ही समान है। इसका उल्लेख हरिभद्रीय आवश्यक में आया है। बृहत्कल्प भाष्य तथा उसकी टीकाओं में भी कई प्रकार के सिक्कों का उल्लेख है। 6. कवडुग (कपर्दक) हिन्दी में इसे कौड़ी कहा जाता है। यह समुद्री जीव का शरीर होता है। सिक्के के रूप में इसका प्रचलन अनेक स्थानों पर अब भी विद्यमान है। 10. काकिणि—यह ताम्बे का सबसे छोटा सिक्का होता था और दक्षिणापथ में प्रचलित था। इसका उल्लेख उत्तराध्ययन टी. (अध्ययन 7 गाथा 11) में आया है। इसका वजन ताम्बे के कार्षापण का चतुर्थांश होता था। 11. द्रम—यह चान्दी का सिक्का था और भिल्लमाल में प्रचलित था। निशीथचूर्णि में इसका दूसरा रूप चम्मलातो दिया हुआ है। अर्थात् यह चर्म का भी बनता था। मलधारी हेमचन्द्र कृत श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 364 / परिशिष्ट