________________ ईसर (ईश्वर)—इसका अर्थ है युवराज या राज्य का उत्तराधिकारी। वह राजा का पुत्र, भाई या निकटतम सम्बन्धी होता था। सर्वसाधारण पर उसका प्रभाव होता था और वह राज्य संचालन में सक्रिय भाग लेता था। उसके गुणों में बताया गया है कि 72 कलाओं, सभी शास्त्रों का जानकार होता था। राजनीति तथा धनुर्विद्या में विशेष निपुणता रखता था। ___कोडुबिय अ. 1 सू. 12. (कौटुम्बिक) इसका अर्थ है परिवार का मुखिया / आनन्द श्रावक को राजा, ईश्वर आदि जो प्रतिष्ठित व्यक्ति सम्मान की दृष्टि से देखते थे और उसका परामर्श लेते रहते थे। उनमें इसका उल्लेख भी आया है। ___कोल्लाक सन्निवेश सन्निवेश का अर्थ है—पड़ाव / कोल्लाक सन्निवेश का निर्देश आनन्द नामक अध्ययन में आया है। यह वाणिज्य ग्राम (आनन्द का निवास स्थान) से उत्तरपूर्व में है। कहा जाता है कि भगवान महावीर को सर्वप्रथम भिक्षा कोल्लाक में प्राप्त हुई थी।। वे उस समय कम्मार (कर्मकार) अर्थात् लोहारों के गांव से आए थे और कोल्लाक सन्निवेश की ओर विहार कर गए। भगवान महावीर . . के प्रथम गणधर इन्द्रभूति भी कोल्लाक सन्निवेश में गए थे और आनन्द श्रावक से मिले थे। यहां आनन्द के जाति बन्धु रहते थे। यहीं पर उसने उपाश्रय में रहकर ग्यारह प्रतिमाएं अङ्गीकार की और संलेखना द्वारा शरीर का त्याग किया। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बसार नाम का गांव है जो प्राचीन वैशाली के खण्डहरों पर बसा हुआ है। उससे कुछ मील उत्तर-पश्चिम की ओर कोलुआ नाम का गांव है। कहा जाता है इसी का प्राचीन नाम कोल्लाक सन्निवेश था। . गाहावई—गृहपति या गाथापति अ. 1 सू. २–जैन तथा बौद्ध साहित्य में नगर या राज्य के प्रधान पुरुषों में गाथापति का भी उल्लेख मिलता है, उसे चक्रवर्ती का एक रत्न माना जाता है। सेना के लिए खाद्य सामग्री उपलब्ध करना उसका कार्य है। शान्ति के समय उसका सम्बन्ध राजकीय कोष्ठागार के साथ रहता है अर्थात् राजा के लिए अन्न आदि की व्यवस्था करना उसका कार्य होता है। किन्तु बौद्ध तथा जैन कथा-साहित्य में उसका वर्णन अनेक चमत्कारिक घटनाओं के साथ मिलता है। यहां उनका उल्लेख आवश्यक नहीं जान पड़ता। उपासकदशाङ्ग में आनन्द आदि कई श्रावकों के साथ यह विशेषण है। ___घरसमुदाण—गृहसमुदान—अ. 1 सू. ७७–जैन मुनि के लिए यह विधान है कि भिक्षा के लिए घूमते समय घरों में किसी प्रकार का भेद-भाव न करे। सम्पन्न घरों में अच्छी भिक्षा मिलेगी और दूसरों में न्यून कोटि की, इस विचार से घरों को चुनकर भिक्षा-वृत्ति न करे। इस बात को लक्ष्य में रखकर भिक्षा-वृत्ति के लिए कुछ चर्याएं बताई गई हैं। उदाहरण के रूप में साधु पहले से ही यह निश्चय करके चलता है कि आज मैं गली में भिक्षा के लिए घूमते समय सर्व प्रथम एक ओर के पहले घर में जाऊंगा फिर दूसरी ओर के दूसरे में, फिर पहली ओर के तीसरे में। इस प्रकार घूमते हुए आवश्यक श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 386 / परिशिष्ट