________________ सुकुमारिका नामक रानी में अत्यन्त आसक्त रहने लगा और राज्य में अव्यवस्था फैलने लगी। परिणामस्वरूप अमात्य-परिषद् ने उसे हटाकर राजकुमार को गद्दी पर बैठा दिया। बौद्ध साहित्य के सच्चकिर जातक में भी इस प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। अहासुहं (यथा सुखं) अ. 1 सू. १२–भगवान महावीर के सामने जब कोई व्यक्ति धर्मानुष्ठान में अग्रसर होने का निश्चय प्रकट करता था तो भगवान कहा करते थे (अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेह) अर्थात् हे देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख हो, देर मत करो। भगवान महावीर की दृष्टि में धर्माचरण ऊपर लादी गई आज्ञा या कष्ट नहीं था / व्यक्ति के मन में जब अपने आप उत्साह जागृत होता था और वह साधना में अग्रसर होने के लिए अपनी उमंग प्रकट करता तभी भगवान उपरोक्त उत्तर देते थे। उस उत्साह में तपस्या एवं अन्य कठोरताएं भी सुखद प्रतीत होती थीं। साथ में भगवान यह भी कह देते थे कि जब तक उत्साह है, आगे बढ़ते चले जाओ। देर करके उत्साह को ठण्डा मत होने दो। उपरोक्त वाक्य में भगवान महावीर का प्रेरक सन्देश मिलता है। ... अमाघाए (अणाघात)—यह शब्द महाशतक के अध्ययन में आया है और कहा गया है कि राजगृह में एक बार अमाघात की घोषणा हुई। इसका अर्थ है हिंसा या प्राणीवध का निषेध / महावीर तथा बुद्ध के समय मगध में यह प्रथा थी कि पवित्र तिथि या मंगलमय अवसर पर राजा की ओर से प्राणी हिंसा बन्द करने की आज्ञा हो जाती थी। बौद्ध साहित्य में भी ऐसी घोषणाओं के अनेक उल्लेख मिलते हैं। मध्यकाल में इसी के लिए अमारी शब्द का प्रयोग किया जाता था। राजस्थान, गुजरात आदि प्रान्तों में, जहां सर्व साधारण पर जैन संस्कृति का प्रभाव है, अब तक ऐसी घोषणाएं होती रहीं हैं। राष्ट्रीय जीवन में ऐसी घोषणाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उस दिन को सारी प्रजा पवित्र मानती है और पाप कार्यों से अलग रहती है। परिणामस्वरूप हृदय में पवित्र विचार उठते हैं और सर्वसाधारण का झुकाव धर्म एवं सदाचार की ओर हो जाता है। . आजीविक—(गोशालक के अनुयायी) मेगस्थनीज तथा तत्कालीन अन्य वर्णनों से ज्ञात होता है कि उन दिनों समाज में श्रमणों की बहुत प्रतिष्ठा थी। भगवान महावीर के लिए आया है कि जब चम्पा के नागरिकों ने उनके आगमन का समाचार सुना तो दर्शनार्थ जाने वालों की भीड़ लग गई। इब्भ इब्भ शब्द का अर्थ है धन सम्पन्न व्यापारी, नगर का साहूकार, यह वैश्य जाति का होता था। जिसके पास हाथी जितना धन हो, वह तीन प्रकार का होता है जिसके पास मणि, मुक्ता, मूंगा, सोना, चांदी आदि द्रव्य हाथी शरीर के प्रमाण हों वह जघन्य इब्भ है। जिसके पास हीरा और माणिक्य की राशि हाथि के तुल्य हो वह मध्यम इब्भ है। जिसके पास केवल हीरों की राशि हाथी के समान हो वह उत्कृष्ट इब्भ होता है। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 385 / परिशिष्ट