________________ भगवान् महावीर से ग्रहण की हुई धर्म-प्रज्ञप्ति का अनुष्ठान करने लगा। विशेष इतना है कि उसे कोई उपसर्ग नहीं हुआ। 11 उपासक प्रतिमाओं का प्रतिपादन उसी प्रकार है। इसी प्रकार सारी घटनाएं कामदेव श्रावक के समान समझनी चाहिएं। यावत् सौधर्मकल्प में अरुणकील विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहां उसकी चार पल्योपम की स्थिति है तथा वहां से च्यव कर वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। || सप्तम अङ्ग उपासकदशा का दशम सालिहीपियाध्ययन समाप्त || उपसंहार मूलम्—दसण्हवि पणरसमे संवच्छरे वट्टमाणाणं चिंता। दसण्हवि वीसं वासाई समणोवासय-परियाओ // 275 // छाया दशानामपि पञ्चदशे संवत्सरे वर्तमानानां चिन्ता। दशानामपि विंशतिं वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायाः। शब्दार्थ दसण्हवि पणरसमे संवच्छरे वट्टमाणाणं चिंता—दसों ही श्रावकों को पन्द्रहवें वर्ष में कुटुम्ब का भार परित्याग कर विशिष्ट. धर्म-साधना की चिन्ता उत्पन्न हुई, दसण्हवि वीसं वासाई समणोवासयपरियाओ और दसों ने ही 20 वर्ष पर्यन्त श्रावक पर्याय का पालन किया। . भावार्थ—दसों श्रावकों को १५वें वर्ष में कुटुम्ब भार को त्यागकर धर्म-साधना की चिन्ता हुई और दसों ने ही 20 वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन किया। मूलम् एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते // 276 // छाया एवं खलु जम्बू! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां दशमस्याऽध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः। शब्दार्थ एवं खलु जम्बू ! इस प्रकार हे जम्बू!, समणेणं जाव संपत्तेणं श्रमण भगवान् यावत् जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, सत्तमस्स अंगस्स–सातवें अङ्ग, उवासगदसाणं-उपासकदशाङ्ग-सूत्र के, दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते-दसवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। भावार्थ इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, सातवें अङ्ग उपासकदशाङ्ग-सूत्र के दसवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। मूलम् उवासगदसाणं सत्तमस्स अंगस्स एगो सुयखंधो / दस अज्झयणा एक्कसरगा श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 362 / सालिहीपिया उपासक, दशम अध्ययन