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________________ राजा था। उस श्रावस्ती नगरी में सालिहीपिया नामक गाथापति रहता था। वह धन-धान्य से समृद्ध था। उसकी चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में सञ्चित थीं, चार करोड़ व्यापार में लगी हुई थीं तथा चार करोड़ घर तथा सामान में लगी हुई थीं। प्रत्येक में 10 हजार गायों वाले चार गोव्रज थे और फाल्गुनी नामक पत्नी थी। ___मलम सामी समोसढे! जहा आणंदो तहेव गिहि-धम्म पडिवज्जइ। जहा कामदेवो तहा जेट्टं पुत्तं ठवेत्ता पोसह-सालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्म-पण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। नवरं निरुवसग्गाओ एक्कारसवि उवासग-पडिमाओ तहेव भाणियव्वाओ, एवं कामदेव-गमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववन्ने। चत्तारि पलिओवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। निक्खेवो // 274 // ___सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं दसमं सालिहीपियाज्झयणं समत्तं॥ ___ छाया स्वामी समवसृतः यथाऽऽनन्दस्तथैव गृहिधर्मं प्रतिपद्यते ! यथा कामदेवस्तथा ज्येष्ठं पुत्रं स्थापयित्वा पौषधशालायां श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य धर्मप्रज्ञप्तिमुपसम्पद्य विहरति, नवरं निरुपसर्गा एकादशाप्युपासकप्रतिमास्तथैव भणितव्याः। एवं कामदेवगमेन ज्ञातव्यं यावत्सौधर्मे कल्पेऽरुणकीले विमाने देवतयोपपन्नः / चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः। महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति। // सप्तमस्याङ्गस्योपासकंदशानां दशमं सालिहीपिया अध्ययन् समाप्तम् // शब्दार्थ—सामी समोसढे स्वामी समवसृत हुए, जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ-आनन्द के समान उसने भी गृहस्थ धर्म स्वीकार किया, जहा कामदेवो तहा जेट्ठ पुत्तं ठवेत्ता—कामदेव के समान उसने भी अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब भार सौंपकर, पोसहसालाए पौषधशाला में, समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से ग्रहण की हुई धर्मप्रज्ञप्ति को स्वीकार करके विचरने लगा, नवरं निरुवसग्गाओ इतना विशेष है कि उसे कोई उपसर्ग नहीं हुआ, एक्कारसवि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियव्वाओ–११ उपासक प्रतिमाओं का प्रतिपादन उसी प्रकार है। एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं—इसी प्रकार सारी घटनाएं कामदेव श्रावक के समान ही समझनी चाहिएं, जाव—यावत्, सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववन्ने सौधर्मकल्प में अरुणकील विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। चत्तारि पलिओवमाइं ठिई–चार पल्योपम की स्थिति है, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ—यह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। . भावार्थ भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए। आनन्द के समान सालिहीपिया ने भी गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया और आनन्द के समान ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर पौषधशाला में | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 361 / सालिहीपिया उपासक, दशम अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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