________________ दसमन्झयणं दशम अध्ययन मूलम् दसमस्स उखेवो, एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए सालिहीपिया नामं गाहावई परिवसइ, अड्ढे दित्ते। चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ, वुड्ढि-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ पवित्थर-पउत्ताओ, चत्तारि वया दस-गोसाह-स्सिएणं वएणं / फग्गुणी भारिया // 273 || छाया—दशमस्योत्क्षेपः। एवं खलु जम्बूः! तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रावस्ती नगरी, कोष्ठकश्चैत्यः, जितशत्रू राजा। ततः खलु श्रावस्त्यां नगर्यां सालिहीपिया नाम गाथापतिः परिवसति / आयो दीप्तः०। चतस्रो हिरण्यकोट्यो निधानप्रयुक्ताः, चतस्रो हिरण्यकोट्यो वृद्धि-प्रयुक्ताः, चतस्रो हिरण्यकोट्यः प्रविस्तरप्रयुक्ताः, चत्वारो व्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन / फाल्गुनी भार्या / शब्दार्थ दसमस्स उक्खेवो दसवें अध्ययन का उपक्षेप पूर्ववत् है, एवं खलु जम्बू!-सुधर्मा स्वामी ने अपने प्रिय शिष्य जम्बू स्वामी से इस प्रकार कहा हे जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय, सावत्थी नयरी श्रावस्ती नगरी, कोट्ठए चेइए—कौष्ठक चैत्य था और, जियसत्तू राया—जितशत्रु राजा, तत्थ णं सावत्थीए नयरीए—उस श्रावस्ती नगरी में, सालिहीपिया नाम गाहावई परिवसइ सालिहीपिता नामक गाथापति रहता था, अड्ढे दित्ते—वह आढ्य यावत् धन, धान्यादि से युक्त था, चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ—उसकी चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में थीं, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वुड्ढिपउत्ताओ—चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं व्यापार में लगी हुई थीं, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ—चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं घर तथा सामान में लगी हुई थीं, चत्तारि वया दस गोसाहस्सिएणं वएणं—प्रत्येक में दस हजार गायों वाले चार व्रज अर्थात् गोकुल थे, फग्गुणी भारिया और फाल्गुनी भार्या थी। भावार्थ दसवें अध्ययन का उपक्षेप पूर्ववत् ही है। श्री सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहा हे जम्बू ! उस काल उस समय श्रावस्ती नगरी में कोष्ठक चैत्य था और जितशत्रु श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 360 / सालिहीपिया उपासक, दशम अध्ययन /