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________________ दससु चेव दिवसेसु उद्दिस्सिज्जंति / तओ सुयखंधो समुद्दिस्सिज्जइ, अणुण्णविज्जइ दोसु दिवसेसु, अंगं तहेव॥ 277 // || उवासगदसाओ समत्ताओ // छाया—उपासकदशानां सप्तमस्याङ्गस्यैकः श्रुतस्कन्धः। दश अध्ययनानि एकस्वरकाणि, दशसु चैव दिवसेषु उद्दिष्यन्ते / ततः श्रुतस्कन्धः समुद्दिष्यते। अनुविज्ञायते द्वयोर्दिवसयोरङ्गस्तथैव। ____ शब्दार्थ-उवासगदसाणं-उपासकदशा नामक, सत्तमस्स अंगस्स—सातवें अङ्ग का, एगो सुयखंधो—एक श्रुतस्कन्ध है। दस अज्झयणा—दस अध्ययन हैं, एक्कसरगा—प्रत्येक में एक जैसा स्वर या पाठ है, दससु चेव दिवसेसु और दस दिनों में, उद्दिस्सिज्जंति—पढ़े जाते हैं, तओ सुयखंधो समुद्दिस्सिज्जइ–इस श्रुतस्कन्ध का पाठ पूरा हो जाता है। अणुण्णविज्जइ दोसु दिवसेसु अंगं तहेव—इसी प्रकार दो दिन में भी इस अंग के पाठ की अनुमति दी गई है। ___ भावार्थ उपासकदशा नामक सातवें अङ्ग में एक श्रुतस्कन्ध है। दस अध्ययन हैं। जिनमें एक ही सरीखा स्वर अर्थात् पाठ है। इसका पाठ दस दिनों में पूरा किया जाता है। ऐसा करने पर श्रुतस्कन्ध का पाठ हो जाता है। इसका पाठ दो दिन में करने की अनुमति भी है। टीका उपासकदशा नामक सप्तम अङ्ग के दस अध्ययन और एक श्रुतस्कन्ध है। श्रुतस्कन्ध का अर्थ है श्रुत अर्थात् शास्त्रीय ज्ञान का स्कन्ध / जैन आगमों का ग्रन्थ विभाजन अनेक प्रकार से मिलता . है। किसी आगम का मूल खण्डों के रूप में जो विभाजन किया गया है, उन्हें श्रुतस्कन्ध कहा गया है। श्रुतस्कन्धों का विभाजन अध्ययनों के रूप में किया जाता है और अध्ययनों का उद्देशों के रूप में। उद्देश का अर्थ है—एक प्रकरण या पाठ जिसका स्वाध्याय प्रायः एक ही बार में किया जाता है। उपनिषदों में इसके लिए प्रपाठक शब्द आया है। प्रस्तुत सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है अर्थात् खण्डों में विभाजन नहीं है। इसमें दस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक श्रावक का वर्णन है। अध्ययनों का उद्देशों के रूप में विभाजन नहीं है। यहां ‘एक्कसरगा' शब्द का प्रयोग है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि पाठ में एक ही शैली अर्थात् गद्य का प्रयोग किया गया है। गाथा या पद्य का नहीं / दूसरा अर्थ यह है कि प्रत्येक अध्ययन में एक ही प्रकरण है अर्थात् उसका उपविभाजन नहीं है। प्रस्तुत सूत्र का स्वाध्याय दस दिनों में पूरा करने की परिपाटी है। किन्तु दो दिनों में पूरा करने की अनुमति भी दी गई है। इति श्री जैनधर्मदिवाकर जैनाचार्य पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज द्वारा अनुवादित // श्री उपासकदशाङ्ग-सूत्र समाप्त॥ श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 363 / सालिहीपिया उपासक, दशम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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