________________ नवमन्झयणं / | नवम अध्ययन मूलम् नवमस्स उक्खेवओ, एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी | कोट्ठए चेइए / जियसत्तू राया / तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नामं गाहावई परिवसइ, .अड्ढे / चत्तारि हिरण्ण-कोडिओ निहाण-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडिओ बुड्ढि-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडिओ पवित्थर-पउत्ताओ, चत्तारि वया दस-गोसाहस्सिएणं वएणं / अस्सिणी भारिया // 266 // . छाया-नवमस्योत्क्षेपकः। एवं खलु जम्बूः! तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रावस्ती नगरी, कोष्ठकश्चैत्यः। जितशत्रू राजा। तत्र खलु श्रावस्त्यां नगर्यां नंदिनीपिता नाम गाथापतिः परिवसति, आढ्यः। चतस्रो हिरण्य-कोट्यो निधानप्रयुक्ताः, चतस्रो हिरण्य-कोट्यो वृद्धिप्रयुक्ताः, चतस्रो हिरण्यकोट्यः प्रविस्तरप्रयुक्ताः, चत्वारो व्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन / अश्विनी भार्या / शब्दार्थ नवमस्स उक्खेवओ—नवम अध्ययन का उपक्षेप पूर्ववत् ही है। एवं खलु जम्बू!-सुधर्मास्वामी ने अपने प्रिय शिष्य जम्बू स्वामी से कहा हे जम्बू!, तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस काल उस समय, सावत्थी नयरी श्रावस्ती नामक नगरी थी, कोट्ठए चेइए—कोष्ठक चैत्य था, जियसत्तू राया और जितशत्रु राजा था, तत्थ णं सावत्थीए नयरीए—उस श्रावस्ती नगरी में, नंदिणीपिया नाम गाहावई परिवसइ नन्दिनीपिता नामक गाथापति रहता था, अड्ढे वह आढ्य अर्थात् सम्पन्न था, चत्तारि हिरण्ण कोडीओ निहाण पउत्ताओ—उसकी चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में थीं, चत्तारि हिरण्ण कोडीओ वुड्ढि पउत्ताओ—चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं व्यापार में लगी हुई थीं तथा; चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ—चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं घर तथा सामान में लगी हुई थीं, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं प्रत्येक में दस हजार गायों वाले चार व्रज अर्थात् गोकुल थे, अस्सिणी भारिया–अश्विनी नामक भार्या थी। भावार्थ-नवम अध्ययन का उपक्षेप पूर्ववत् है। सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहा—हे जम्बू! उस समय श्रावस्ती नगरी तथा कोष्ठक चैत्य था। जितशत्रु राजा राज्य करता था। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 357 / नन्दिनीपिया उपासक, नवम अध्ययन |