________________ उस नगरी में नन्दिनीपिता नामक गाथापति रहता था। वह धन आदि से परिपूर्ण था। उसकी चार. करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में सञ्चित थीं, चार करोड़ व्यापार में लगी हुई थीं तथा चार करोड़ घर तथा सामान में लगी हुई थीं। प्रत्येक में दस हजार गायों के हिसाब से चार व्रज थे। अश्विनी नामक भार्या थी। मूलम् सामी समोसढे / जहा आणंदो तहेव गिहि-धम्म पडिवज्जइ / सामी बहिया विहरइ // 270 // छाया स्वामी समवसृतः / यथाऽऽनन्दस्तथैव गृहिधर्म प्रतिपद्यते / स्वामी बहिर्विहरति / शब्दार्थ—सामी समोसढे—भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए, जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ– आनन्द के समान उसने भी गृहस्थ धर्म स्वीकार किया, सामी बहिया विहरइ–महावीर स्वामी अन्य जनपदों में विहार कर गए। भावार्थ भगवान् महावीर स्वामी समवसृत हुए। आनन्द के समान उस नन्दिनीपिता ने भी गृहस्थ धर्म स्वीकार किया। उसके बाद भगवान् महावीर स्वामी अन्य जनपदों में विहार कर गए। मूलम् तए णं से नंदिणीपिया समंणोवासए जाए जाव विहरइ // 271 // छाया ततः खलु स नन्दिनीपिता श्रमणोपासको जातो यावद्विहरति / शब्दार्थ तए णं नंदिणीपिया समणोवासए जाए तदनन्तर वह नन्दिनीपिता श्रमणोपासक बनकर, जाव विहरइ—यावत् विचरने लगा। भावार्थ नन्दिनीपिता श्रावक बनकर विचरने लगा। मूलम् तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोवासयस्स बहूहिँ सीलव्वयगुण जाव भावमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वइक्कंताई। तहेव जेठं पुत्तं ठवेइ / धम्मपण्णत्तिं / वीसं वासाइं परियागं / नाणत्तं अरुणगवे विमाणे उववाओ.। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्खेवओ // 272 // || सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं नवमं नन्दिणीपियाज्झयणं समत्तं // छाया ततः खलु तस्य नंदिनीपितुः श्रमणोपासकस्य बहुभिः शील-व्रत-गुण यावद् भावयतश्चतुर्दश संवत्सरा व्युत्क्रान्ताः / तथैव ज्येष्ठं पुत्रं स्थापयति / धर्मप्रज्ञप्तिम् / विंशतिं वर्षाणि पर्यायम् / नानात्वमरुणगवे विमाने उपपात: / महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति / निक्षेपः / / // सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां नवमं नन्दिनीपिता अध्ययनं समाप्तम् // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 358 / नन्दिनीपिया उपासक, नवम अध्ययन ,