________________ छाया-ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासको बहुभिः शील यावद् भावयित्वा विंशतिं वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा, एकादशोपासकप्रतिमाः सम्यक् कायेन स्पृष्ट्वा मासिक्या संलेखनयाऽऽत्मानं जोषयित्वा, षष्टिं भक्तान्यनशनेन छित्त्वा आलोचितप्रतिक्रान्तः समाधिप्राप्तः कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पेऽरुणावतंसके विमाने देवतयोपपन्नः / चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः, महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति / निक्षेपः। || सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां महाशतकं अष्टमध्ययनं समाप्तम् // ___ शब्दार्थ तए णं से महासयए समणोवासए तदनन्तर उस महाशतक श्रमणोपासक ने, बहूहिं सील जाव भावेत्ता–अनेक प्रकार से शील व्रत आदि का यावत् पालन किया, इस प्रकार, वीसं वासाइं–२० वर्ष तक, समणोवासग-परियायं पाउणित्ता–श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया, एक्कारस पडिमाओ सम्म काएण फासित्ता—एकादश उपासक प्रतिमाएं शरीर द्वारा सम्यक रूप से ग्रहण की, मासियाए संलेहणाए–एक मास की संलेखना द्वारा, अप्पाणं झूसित्ता अपने आपकों जोषित करके, सट्ठि भत्ताइं–साठ भक्तों के, अणसणाए छेदेत्ता—अन्न-पानी के अनशन को पूरा करके, आलोइय पडिक्कते समाहिपत्ते—आलोचना प्रतिक्रमण द्वारा समाधि प्राप्त करके, कालमासे कालं किच्चा-समय पूरा होने पर मृत्यु प्राप्त करके, सोहम्मे कप्पे सौधर्म कल्प, अरुणवडिंसए विमाणे—अरुणावतंसक विमान में, देवत्ताए उववन्ने देव रूप में उत्पन्न हुआ, चत्तारि पलिओवमाई ठिई और चार पल्योपम की स्थिति प्राप्त की, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ यावत् महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा। निक्खेवो निक्षेप पूर्ववत् है। भावार्थ-महाशतक श्रावक अनेक प्रकार से शील एवं व्रतों द्वारा आत्मविकास करने लगा। कुल 20 वर्ष तक श्रावक पर्याय पालन की। ग्यारह प्रतिमाओं को अङ्गीकार किया। एक महीने की संलेखना द्वारा आत्मा को पवित्र करके साठ भक्तों का अनशन किया। आलोचना-प्रतिक्रमण तथा समाधि द्वारा आत्मा को शुद्ध किया। इस प्रकार धर्मानुष्ठान करते हुए समय आने पर मृत्यु प्राप्त करके सौधर्म देवलोक के अरुणावतंसक विमान में उत्पन्न हुआ और चार पल्योपम की आयु प्राप्त की। समय आने पर वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और सिद्धि प्राप्त करेगा। टीका–उपरोक्त सूत्रों में भगवान गौतम के आदेशानुसार महाशतक द्वारा प्रायश्चित्त का वर्णन है, उसने अपनी भूल स्वीकार की। आलोचना तथा प्रतिक्रमण करके समाधि को प्राप्त हुआ। यहां समाधि का अर्थ है चित्त की प्रसन्नता। जब दोष रूपी कांटा निकल गया तो उसका चित्त प्रसन्न हो गया। अन्त में शरीर परित्याग करके वह भी देवलोक में उत्पन्न हुआ और अन्य श्रावकों के समान महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेगा। || सप्तम अङ्ग उपासकदशा का अष्टम महाशतक अध्ययन समाप्त // | श्री उपासक द / / 356 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन