________________ समणोवासयस्स—महाशतक श्रमणोपासक के, अंतियाओ-समीप से, पडिणिक्खमइ निकले, पडिणिक्खमित्ता निकलकर, रायगिहं नयरं मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छइ राजगृह नगरी के बीच में से होते हुए, निग्गच्छित्ता निकलकर, जेणेव जहां पर, समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ श्रमण भगवान् महावीर थे वहां आये, उवागच्छित्ता—आकर, समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीर को, वंदइ नमसइ वन्दना नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता वन्दना नमस्कार करके, संजमेणं तवसा संयम और तप के द्वारा, अप्पाणं भावेमाणे विहरइ—आत्मा का विकास करते हुए विचरने लगे। . भावार्थ भगवान् गौतम महाशतक श्रावक के पास से लौटे और राजगृह नगर के बीच होते हुए भगवान् महावीर के पास आए। उन्हें वन्दना-नमस्कार किया और संयम तथा तप द्वारा आत्मविकास करते हुए विचरने लगे। भगवान् महावीर का विहारमूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय-विहार-विहरइ // 267 // छाया ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरोऽन्यदा कदाचित् राजगृहान्नगराप्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति / शब्दार्थ तए णं समणे भगवं महावीरे—तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर, अन्नया कयाइ–एक दिन, रायगिहाओ नयराओ राजगृह नगरी से, पडिणिक्खमइ निकले, पडिणिक्खमित्ता–निकलकर, बहिया जणवय विहारं विहरइ–अन्य जनपदों में विचरने लगे। भावार्थ कुछ समय पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर से विहार करके अन्य जनपदों में विचरने लगे। महाशतक के जीवन का उपसंहार. मूलम् तए णं से महासयए समणोवासए बहूहिं सील जाव भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासग-परियायं पाउणित्ता, एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं काएण फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडिंसए विमाणे देवत्ताए उववन्ने / चत्तारि पलिओवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्खेवो॥२६८॥ || सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं महासययमज्झयणं समत्तं // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 355 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन