________________ स्वयं धर्म में स्थिर होने पर भी रेवती के कारण महाशतक को क्रोध आ गया। उत्तराध्ययन सूत्र में इसी प्रकार गुरु और शिष्य को प्रकट किया गया है अणासवा थूलवया कुसीला मिउंपि चंडं पकरंति सीसा / चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायए ते हु दुरासयंपि || अर्थात् अविनीत, कठोर बोलने वाले तथा दुराचारी शिष्य कोमल हृदय गुरु को भी क्रोधी बना देते हैं, और गुरु के मन को पहचानने वाले चतुर तथा सुशील शिष्य क्रोधी गुरु को भी प्रसन्न कर लेते भगवान् का आगमनमूलम् तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया // 258 // छाया तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसरणं यावत्परिषत् प्रतिगता | शब्दार्थ तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस काल उस समय, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर आए, समोसरणं समवसरण रचा गया, जाव परिसा पडिगया—यावत् परिषद् वापिस चली गई। ___ भावार्थ उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर .समंवसृत हुए! परिषद् आई और धर्मोपदेश सुनकर चली गई। भगवान द्वारा महाशतक के पास गौतम स्वामी को भेजकर उसका दोष बतानामूलम् “गोयमा !" इ समणे भगवं महावीरे एवं वयासी–“एवं खलु गोयमा ! इहेव रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासयए नामं समणो वासए पोसहसालाए अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणाए झूसिय-सरीरे भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ / / 256 // ___ छाया—“गौतम!" इति श्रमणो भगवान् महावीर एवमवादीत्–“एवं खलु गौतम! इहैव राजगृहे नगरे ममान्तेवासी महाशतको नाम श्रमणोपासकः पौषधशालायामपश्चिममारणान्तिकसंलेखनया जोषितशरीरो भक्तपानप्रत्याख्यातः कालमनवकाङ्क्षमाणो विहरति / " शब्दार्थ गोयमा इ हे गौतम! इस प्रकार, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर, एवं वयासी–बोले—एवं खलु गोयमा इस प्रकार हे गौतम !, इहेव रायगिहे नयरे—इसी राजगृह नगर में, ममं अंतेवासी मेरा अन्तेवासी, महासयए नामं समणोवासए महाशतक नाम का श्रमणोपासक, पोसहसालाए—पौषधशाला में, अपच्छिममारणंतिय संलेहणाए—अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना द्वारा, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 348 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन