________________ कर, इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए—इस रत्नप्रभा पृथ्वी में, लोलुयच्चुए लोलुपाच्युत, नरए-नरक में, चउरासीइवाससहस्सटिइएसु–चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले, नेरइएसु-नारकियों में, नेरइयत्ताए उववन्ना-नारकी के रूप में उत्पन्न हुई। ____ भावार्थ रेवती गाथापत्नी सात दिनों के अन्दर अलस नामक रोग से पीड़ित होकर चिन्तित, दुखी तथा विवश होती हुई मर गई और लोलुपाच्युत नरक में उत्पन्न हुई जहां उसे 84 हजार वर्षों की आयु प्राप्त हुई। टीका—अलसएणं महाशतक ने क्रुध होकर रेवती से कहा तू अलसक रोग से पीड़ित होकर सात दिन में मर जाएगी। टीकाकार ने अलसक रोग का अर्थ विशूचिका (पेट का दर्द) किया है और इस विषय में एक श्लोक उद्धृत किया है “नोर्ध्वं व्रजति नाधस्तादाहारो न च पच्यते / _ आमाशयेऽलसीभूतस्तेन सोऽलसकःस्मृतः // " / अर्थात् जब आहार न तो ऊपर की ओर जाता है, न नीचे की ओर, और न पचता है, आमाशय में गांठ की तरह जम जाता है, उसे अलसक रोग कहते हैं। इससे ज्ञात होता है कि अलसक मन्दाग्नि का उत्कट रूप है। हाथ-पैरों की सूजन को भी अलसक कहते हैं। इसी प्रकार हाथ-पैरों के स्तम्भन अर्थात् उनकी हलचल रुक जाने को अलसक कहा जाता है। चुलनीपिता तथा सुरादेव के वर्णन में आया है कि पुत्र या पति के अस्थिर होने पर माता या पत्नी ने उन्हें धर्म में स्थिर किया। महाशतक का उदाहरण इसके विपरीत है। यहां पति धर्म में स्थिर है और पत्नी उसे विचलित करना चाहती है। पत्नी या परिवार की इस अनुकूलता तथा प्रतिकूलता को प्रदर्शित करने के लिए स्थानाङ्ग सूत्र में एक रूपक दिया गया है 1: साल का वृक्ष, साल का परिवार / 2. साल का वृक्ष, एरण्ड का परिवार। 3. एरण्ड वृक्ष, साल का परिवार / 4. एरण्ड वृक्ष, एरण्ड का परिवार / इसी प्रकार गृहस्थ तथा उसके परिवार का सम्बन्ध भी चार प्रकार का है— 1. स्वयं श्रेष्ठ और परिवार भी श्रेष्ठ / 2. स्वयं श्रेष्ठ और परिवार निकृष्ट / 3. स्वयं निकृष्ट और परिवार श्रेष्ठ / 4. स्वयं निकृष्ट और परिवार भी निकृष्ट / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 347 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन