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________________ गाथापति, परिवसइ रहता था, अड्ढे—वह आढ्य यावत् समृद्ध था, जहा आणंदो—आनन्द श्रावक के समान सारा वृत्तान्त समझ लेना चाहिए, नवरं इतना विशेष है, अट्ठ हिरण्णकोडीओ—आठ करोड़ सुवर्ण मुद्राएं, सकंसाओ कांस्य के साथ, निहाण-पउत्ताओ कोष में सञ्चित थीं, अट्ठ हिरण्णकोडीओ—आठ करोड़ सुवर्ण मुद्राएं, सकंसाओ कांस्य सहित, वुड्डि पउत्ताओ व्यापार में प्रयुक्त थीं, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ कांस्य से नपी हुई, आठ करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कांस्य से प्रयुक्त, पवित्थर-पउत्ताओ घर के सामान में लगी हुई थीं, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं—प्रत्येक में दस हजार गायों वाले आठ व्रज थे। भावार्थ-राजगृह नगर में महाशतक नामक गाथापति रहता था। वह आढ्य एवं आनंद श्रावक की तरह सम्पन्न था। उसके कांस्य सहित आठ करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में, आठ करोड़ व्यापार में और आठ करोड़ घर तथा सामान में लगी हुई थीं। पशुधन के आठ व्रज थे। 13 भाएंमूलम् तस्स णं महासयगस्स रेवई-पामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था, अहीण जाव सुरूवाओ // 233 // छाया तस्य खलु महाशतकस्य रेवती प्रमुखास्त्रयोदश भार्या आसन्, अहीनयावत्सुरूपाः। शब्दार्थ तस्स णं महासयगस्स—उस महाशतक के, रेवई पामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था रेवती आदि प्रमुख 13 पत्नियां थीं, अहीण जाव सुरूवाओ—(वे) अहीन (अर्थात् सम्पूर्णाङ्ग) यावत् सुरूप थीं। भावार्थ उसकी रेवती आदि 13 पलियां थीं। सभी सम्पूर्णाङ्ग यावत् सुन्दर थीं। पत्नियों की सम्पत्तिमूलम् तस्स णं महासयगस्स रेवईए भारियाए कोल-घरियाओ अट्ठ हिरण्ण-कोडीओ, अट्ठ वया दस-गो-साहस्सिएणं वएणं होत्था / अवसेसाणं दुवालसण्हं भारियाणं कोल-घरिया एगमेगा हिरण्ण-कोडी एगमेगे य वए दस-गो-साहस्सिएणं वएणं होत्था // 234 // छाया तस्य खलु महाशतकस्य रेवत्या भार्यायाः कौलगृहिका अष्टहिरण्यकोट्योऽष्ट व्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेनाऽऽसन् / अवशेषाणां द्वादशानां भार्याणां कौलगृहिका एकैका हिरण्यकोटी, एकैकश्च व्रजो दशगोसाहस्रिकेण व्रजेनाऽऽसीत् / / शब्दार्थ तस्स णं महासयगस्स—उस महाशतक की, रेवईए भारियाए रेवती भार्या के पास, कोलघरियाओ पितृकुल से प्राप्त, अट्ठ हिरण्णकोडीओ—आठ करोड़ सुवर्ण मुद्राएं थीं, अट्ट वया श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 332 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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