________________ मम मध्यमकं पुत्रं, येन मम कनीयांसं पुत्रं, यावद् आसिञ्चति, याऽपि च खलु ममेयमग्निमित्रा भार्या समसुखदुःख सहायिका, तामपि चेच्छति स्वस्माद् गृहान्नीत्वा ममाग्रतो घातयितुम्, तत् श्रेयः खलु ममैतं पुरुषं ग्रहीतुमिति" कृत्वोत्थितः, यथा चुलनीपिता तथैव सर्वं भणितव्यम्, नवरमग्निमित्रा भार्या कोलाहलं श्रुत्वा भणति। शेषं यथा चुलनीपितृवक्तव्यता, नवरमरुणभूते विमाने उपपन्नो यावन्महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति / निक्षेपः। || सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां सप्तमं सद्दालपुत्र अध्ययनं समाप्तम् // शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स—उस श्रमणोपासक सद्दालपुत्र के मन में, तेणं देवेणं—उस देव द्वारा, दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्तस्स समाणस्स—दूसरी और तीसरी बार भी इस प्रकार कहे जाने पर, अयं अज्झत्थिए 4 समुप्पन्ने—यह विचार उत्पन्न हुआ, एवं जहा चुलणीपिया जिस प्रकार चुलनीपिता ने सोचा था, तहेव चिंतेइ उसी तरह सोचने लगा, जेणं ममं जेठं पुत्तं—जिसने मेरे ज्येष्ठ पुत्र को, जेणं ममं मज्झिमयं पुत्तं जिसने मेरे मंझले पुत्र को, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं जिसने मेरे कनिष्ठ पुत्र को मार डाला, जाव आयंचइ—यावत् छीटें दिए, जावि य णं ममं इमा—और जो यह मेरी, अग्गिमित्ता भारियाः अग्निमित्रा भार्या, समसुहदुक्ख सहाइया मेरे सुख-दुख में सहायक है, तंपि य–उसको भी, साओ गिहाओ नीणेत्ता घर से लाकर, मम अग्गओ—मेरे आगे, घाएत्तए इच्छइ मारना चाहता है, तं सेयं खलु ममं—अतः मेरे लिए यही उचित है कि, एयं पुरिसं गिण्हित्तए—इस पुरुष को पकड़ लूं, त्ति कटु उद्धाइए—यह सोचकर उठा, जहा चुलणीपिया तहेव सव्वं भाणियव्वं शेष सब बातें चुलनीपिता के समान समझना, नवरं इतनी ही विशेषता है कि, अग्गिमित्ता भारिया–अग्निमित्रा भार्या, कोलाहलं सुणित्ता भणइ–कोलाहल सुनकर बोलती है, सेसं जहा चुलणीपिया वत्तव्वया शेष वर्णन चुलनीपिता के समान है, नवरं विशेषता इतनी ही है कि, अरुणभूए विमाणे उववने—अरुणभूत विमान में उत्पन्न हुआ, जाव—यावत्, महाविदेहे वासे सिज्जिहिइ–महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। निक्षेप / ' भावार्थ—जब उस अनार्य पुरुष ने दूसरी और तीसरी बार इसी प्रकार कहा तो सद्दालपुत्र के मन में यह पुरुष अनार्य है इत्यादि सारी बातें आईं। उसने सोचा कि इस अनार्य ने मेरे ज्येष्ठ, मध्यम तथा कनिष्ठ पुत्र को मार डाला है। उनके टुकड़े-टुकड़े किए और मेरे शरीर को उनके रुधिर और मांस से छींटे दिए। अब मेरी पत्नी अग्निमित्रा को जो सुख-दुख तथा धर्म-कार्यों में सहायक है, घर से लाकर मेरे सामने मारना चाहता है। इस प्रकार सारा वृत्तान्त चुलनीपिता के समान समझना चाहिए। केवल इतना फर्क है कि कोलाहल सुनकर चुलनीपिता की माता आई थी और यहां पली अग्निमित्रा आई। अन्य अन्तर यह है कि सद्दालपुत्र मरकर अरुणभूत विमान में उत्पन्न हुआ। वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 328 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन