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________________ विइज्जिया धम्माणुराग-रत्ता समसुह-दुक्ख-सहाइया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, नीणित्ता तव अग्गओ घाएमि, घाइत्ता नव मंस-सोल्लए करेमि, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, ‘जहा णं तुमं अट्ट, दुहट्ट जाव ववरोविज्जसि" // 227 // ___ छाया ततः खलु स देवः सद्दालपुत्रं श्रमणोपासकमभीतं यावद् दृष्ट्वा चतुर्थमपि सद्दालपुत्रं श्रमणोपासकमेवमवादीत्—“हंभोः सद्दालपुत्र! श्रमणोपासक! अप्रार्थितप्रार्थक! यावन्न भनक्षि ततस्ते येयमग्निमित्रा भार्या धर्मसहायिका, धर्मवैद्यिका, धर्मानुरागरक्ता, समसुखदुख सहायिका, तां ते स्वस्माद् गृहान्नयामि, नीत्वा तवाग्रतो घातयामि, घातयित्वा नव मांसशूल्यकानि करोमि, कृत्वाऽऽदानभृते कष्टाहे आदहामि, आदह्य तव गात्रं मांसेन च शोणितेन चाऽऽसिञ्चामि यथा खलु त्वामार्त्त दुखात यावद् व्यपरोपयिष्यसे / ' शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, से देवे—उस देव ने, सद्दालपुत्तं समणोवासयं श्रमणोपासक सद्दालपुत्र को, अभीयं जाव पासित्ता–निर्भय यावत् समाधिस्थ देखकर, चउत्थंपि-चौथी बार भी, सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी–श्रमणोपासक सद्दालपुत्र को इस प्रकार कहा—हं भो सद्दालपुत्ता! समणोवासया! अपत्थियपत्थया ! हे श्रमणोपासक ! सद्दालपुत्र! मृत्यु को चाहने वाले, जाव न भंजसि—यावत् तू शीलादि व्रतों को भङ्ग नहीं करेगा, तओ-तो, ते जा इमा तेरी जो यह, अग्गिमित्ता भारिया–अग्निमित्रा भार्या है और जो, धम्मसहाइया—धर्म में सहायता देने वाली, धम्मविइज्जिया धर्म की वैद्य अर्थात् धर्म को सुरक्षित करने वाली, धम्माणुरागरत्ता-धर्म के अनुराग में रंगी हुई, समसुहदुक्खसहाइया-दुःख सुख में समान रूप से सहायता करने वाली है, तं—उसको, ते साओ गिहाओ तेरे अपने घर से, नीणेमि लाऊंगा, नीणित्ता लाकर, तव अग्गओ घाएमि तेरे सामने मार डालूंगा, घाइत्ता—मारकर, नव मंस-सोल्लए करेमि–मांस के ,नौ टुकड़े करूंगा, करेत्ता—ऐसा करके, आदाण भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि तेल से भरे हुए कडाहे में तलूंगा, अद्दहेत्ता तलकर, तव गायं तेरे शरीर को, मंसेण य सोणिएण य आयंचामि—मांस और रुधिर से छींटे दूंगा, जहा णं तुमं—जिससे तू, अट्ट-दुहट्ट जाव ववरोविज्जसि—अति दुखात तथा विवश होकर यावत् मर जाएगा। भावार्थ देव ने इस पर भी सद्दालपुत्र को निर्भय यावत् समाधिस्थ देखा तो चौथी बार बोला—अरे श्रमणोपासक सद्दालपुत्र! मृत्यु को चाहने वाले! यदि तू शीलादि व्रतों को भङ्ग नहीं करेगा तो तेरी अग्निमित्रा भार्या को जो कि धर्म में सहायता देने वाली. धर्म की वैद्य अर्थात् धर्म को सुरक्षित रखने वाली, धर्म के अनुराग में रंगी हुई, तथा दुःख-सख में सहायक है. उसे तेरे घर से लाकर तेरे सामने मारकर नौ टुकड़े करूंगा। उन्हें तेल से भरे कडाहे में तलूंगा। उसके तपे हुए खून एवं मांस से श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 326 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन .
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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