________________ हैं। तथ्य अर्थात् सफल चारित्र सम्पत्ति के स्वामी हैं। इन शब्दों की व्याख्या पिछली टीका में दी जा चुकी है। यहाँ भी गोशालक ने महामाहन शब्द की व्याख्या करते हुए इन्हीं बातों की ओर संकेत किया है। महामाहन का दूसरा अर्थ है—मा हन (मत मारो) इस प्रकार का उपदेश देने वाले निर्ग्रन्थों के अग्रणी। तीसरा अर्थ है श्रेष्ठ ब्राह्मण / जैन-शास्त्रों में ब्राह्मण का अर्थ है वह व्यक्ति जो ब्रह्मचर्य का धारक है। स्थूल रूप से ब्रह्मचर्य का अर्थ है काम-भोग एवं वासनाओं से विरक्ति / यह इसका निषेधात्मक अर्थ है। विधेयात्मक अर्थ है 'ब्रह्म' अर्थात् आत्मा में विचरण / जैन धर्म में दोनों अर्थ लिए गये हैं, और उन्हीं के आधार पर 'ब्राह्मण' या 'माहन शब्द की व्याख्या की गई है। 'बंभचेरेण बम्हणो' (देखिये उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 25) / 2. महागोप दूसरे विशेषण के रूप में भगवान महावीर को महागोप कहा गया है। इसका अर्थ है ग्वाला या रक्षक / संसार के प्राणी अनेक कष्टों से पीड़ित हैं। बलवान् प्राणी दुर्बल को सता रहा है, सिंह आदि माँसाहारी अन्य प्राणियों को खा जाते हैं। कोई मारा जा रहा है, कोई बाँधा जा रहा है, कोई काटा जा रहा है, कोई छेदा जा रहा है। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है। भगवान् महावीर हाथ में धर्म रूपी दण्ड लेकर प्राणियों को बुरे कर्मों से रोकते हैं और जिस प्रकार ग्वाला अपने डण्डे से पशुओं को हांकता हुआ बाड़े में पहुँचा देता है, इसी प्रकार भगवान् महावीर भी अपने सम्पर्क में आए हुए भव्य प्राणियों को मोक्ष रूपी बाड़े में पहुँचाते हैं, इसलिए वे महागोप कहे जाते हैं। 3. महासार्थवाह तीसरा विशेषण है। सार्थ का अर्थ है 'काफिला' और 'सार्थवाह' का अर्थ है, काफिले का संचालन करने वाला उसका नेता। प्राचीन काल में व्यापारी, यात्री तथा अन्य लोग इकट्ठे होकर यात्रा किया करते थे। क्योंकि उन्हें घने जंगल पार करने पड़ते थे और वहाँ चोर, डाकू, हिंसक जीव तथा अन्य संकटों का सामना करना पड़ता था। अतः वे इकट्ठे होकर पूरी तैयारी के साथ चलते थे। उसका संचालन तथा सारी व्यवस्था किसी एक व्यक्ति के हाथ में रहती थी। उसी को सार्थवाह कहा जाता था। धार्मिक साहित्य में संसार को विशाल अटवी की उपमा दी जाती है। उसमें अनेक यात्री रास्ता भूल जाते हैं। चोर उन्हें लूट लेते हैं, डाकू मार डालते हैं, हिंसक प्राणी खा जाते हैं। सार्थवाह उन सबकी रक्षा करता हुआ उन्हें पार ले जाता है और नगर तक पहुँचा देता है। भगवान महावीर को भी इसी प्रकार मोक्ष रूपी नगर तक पहुँचाने वाला सार्थवाह बताया गया है। 4. महाधर्म-कथी—चौथा विशेषण है। इसका अर्थ है धर्मोपदेशक ! भगवान् महावीर महान् धर्मोपदेशक थे। धर्मोपदेशक का कार्य है पथ-भ्रष्टों को सत्पथ दिखाना / जो मिथ्यात्वरूपी अन्धकार में पड़े हुए हैं उन्हें प्रकाश देना तथा जीवन के उलझे हुए मार्ग को सुलझाना / भगवान् महावीर विविध | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 318 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन /