SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान् महावीर, अन्नया कयाइ–एक दिनं, पोलास पुराओ नयराओ—पोलासपुर नगर, सहस्संबवणाओ—सहस्राम्रवन से, पडिनिक्खमइ विहार कर गए, पडिनिक्खमित्ता–विहार करके, बहिया जणवय विहारं विहरइ बाहर के जनपदों में विचरने लगे। भावार्थ उसके बाद एक दिन श्रमण भगवान् महावीर पोलासपुर के सहस्राम्रवन उद्यान से विहार कर गए और बाहर के जनपदों में विचरने लगे। मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए अभिगए-जीवा जीवे जाव विहरइ॥ 213 // छाया–ततः खलु स सद्दालपुत्रः श्रमणोपासकोऽभिगतजीवाजीवो यावद्विहरति / शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते समणोवासए—वह श्रमणोपासक सद्दालपुत्र, अभिगय-जीवाजीवे—जीव-अजीव का ज्ञाता होकर, जाव विहरइ यावत् विचरने लगा। __भावार्थ तदनन्तर श्रमणोपासक सद्दालपुत्र जीवाजीव का ज्ञाता बनकर जीवन व्यतीत करने लगा। मूलम् तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धढे समाणे - “एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीविय-समयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिठिंपडिवन्ने। तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गंथाणं दिठ्ठि वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिठिं गेण्हावित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता आजीविय-संघ-सम्परिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीविय सभा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आजीवियसभाए भण्डग-निक्खेवं करेइ, करित्ता कइवएहिं आजीविएहिं सद्धिं जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छइ // 214 // . छाया-ततः खलु स गोसालो मंखलि-पुत्रोऽस्यां कथायां लब्धार्थः सन्–“एवं खलु सद्दालपुत्र आजीविकसमयं वमित्वा श्रमणानां निर्ग्रन्थानां दृष्टिं प्रतिपन्नः, तद् गच्छामि खलु सद्दालपुत्रमाजीविकोपासकं श्रमणानां निर्ग्रन्थानां दृष्टिं वामयित्वा पुनरप्याजीविकदृष्टिं ग्राहयितुम्" इति कृत्वा, एवं सम्प्रेक्षते, सम्प्रेक्ष्याजीविकसंघ संपरिवृतो येनैव पोलासपुरं नगरं येनैवाऽऽजीविकसभा तेनैवोपागच्छति, उपागत्याऽऽजीविकसभायां भाण्डकनिक्षेपं करोति, कृत्वा कतिपयैराजीविकैः सार्धं येनैव सद्दालपुत्रः श्रमणोपासकस्तेनैवोपागच्छति। . शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से गोसाले मंखलिपुत्ते वह गोशालक मंखलिपुत्र, इमीसे कहाए लद्धढे समाणे—इस वृत्तान्त को सुनकर, एवं खलु सद्दालपुत्ते कि इस प्रकार सद्दालपुत्र ने, श्री उपासक दशाग सूत्रम / 306 / सद्दालपूत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy