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________________ छाया-ततः खलु साऽग्निमित्रा भार्या स्नाता यावत् प्रायश्चित्ता शुद्धात्मवेष्याणि यावदल्पमहार्घाभरणालंकृतशरीरा चेटिका-चक्रवाल परिकीर्णा धार्मिकं यानप्रवरं दूरोहति, दुरुह्य पोलासपुर नगरं मध्यंमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य येनैव सहस्राम्रवणमुद्यानं स्तेनैवोपगच्छति, उपागत्य धार्मिकाद् यानप्रवरात् प्रत्यवरोहति, प्रत्यवरुह्य चेटिका-चक्रवालपरिवृत्ता येनैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तेनैवोपागच्छति, उपागत्य त्रिःकृत्वो यावद्वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य नात्यासन्ने नातिदूरे यावप्राञ्जलिपुटा स्थितैव पर्युपास्ते। शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, सा अग्गिमित्ता भारिया ण्हाया उस अग्निमित्रा भार्या ने स्नान किया, जाव पायच्छित्ता यावत् प्रायश्चित्त अर्थात् पाप नाशक कर्म किए, सुद्धप्पावेसाइं—शुद्ध तथा सभा में प्रवेश करने योग्य उत्तम वस्त्र धारण किए, जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा—यावत् अल्प भार तथा बहुमूल्य आभूषणों से अपने शरीर को आभूषित किया, चेडिया-चक्कवाल परिकिण्णाचेटिका चक्रवाल, दासी समूह से घिरी हुई, वह अग्निमित्रा, धम्मियं जाण-प्पवरं दुरुहई धार्मिक यान श्रेष्ठ पर सवार हुई, दुरुहित्ता–सवार होकर, पोलासपुरं नगरं मज्झं-मज्झेणं पोलासपुर नगर के बीचों-बीच, निग्गच्छइ–निकली, निग्गच्छित्ता निकलकर, जणेव सहस्सम्बवणे उज्जाणे, जहां सहस्राम्रवन उद्यान था, तेणेव वहां, उवागच्छइ—आई, उवागच्छित्ता–आकर, धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ—उस धार्मिक यान-प्रवर-रथ से नीचे उतरी, पच्चोरुहित्ता-उतरकर, चेडिया चक्कवाल परिवुडा—दासी-समूह से घिरी हुई, जेणेव समणे भगवं महावीरे—जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, तेणेव उवागच्छई—वहां आई, उवागच्छित्ता—आकर, तिक्खुत्तो जाव वंदइ नमसइ तीन बार यावत् वन्दना नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता–वन्दना नमस्कार करके, नच्चासन्ने नाइदूरे–न तो बहुत समीप और न ही बहुत दूर, जाव पज्जलिउडा—यावत् प्राञ्जलिपुट होकर अर्थात् हाथ जोड़े हुए, ठिइया चेव पज्जुवासइ–खड़ी-खड़ी पर्युपासना करने लगी। . भावार्थ अग्निमित्रा भार्या ने स्नान किया, शुद्ध तथा सभा में प्रवेश करने योग्य उत्तम वस्त्र धारण किए यावत् अल्प भार किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से अपने शरीर को आभूषित किया। दासी समूह से घिरी हुई धार्मिक रथप्रवर पर सवार हुई तथा पोलासपुर नगर के बीच होती हुई सहस्राम्रवन उद्यान में पहुंची। रथ से उतरकर चेटि-परिवार से घिरी हुई भगवान महावीर के पास पहुंची। भगवान् को तीन बार वन्दना नमस्कार किया, न बहुत समीप न अति दूर खड़ी हुई और हाथ जोड़कर उपासना करने लगी। मूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे अग्गिमित्ताए तीसे य जाव धम्मं कहेइ // 206 // छाया ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरोऽग्निमित्रायै तस्यां च यावद् धर्म कथयति / शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे—श्रमण भगवान् महावीर ने, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 306 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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