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________________ ने उससे पूछा- “यदि सब बातें नियत हैं तो सभी प्राणी तुम्हारी तरह देव क्यों नहीं बन गए?" इस पर देव निरुत्तर होकर चला गया। सद्दालपुत्र भी गोशालक का अनुयायी था। एक दिन वह बर्तनों को धूप में रख रहा था। भगवान ने पूछा—यह बर्तन कैसे बने? सद्दालपुत्र ने बताया—पहले मिट्टी को पानी में भिगोते हैं, फिर उसमें क्षार और करीष मिलाते हैं, फिर चाक पर चढ़ाते हैं, तब जाकर तरह-तरह के बर्तन बनते हैं। भगवान ने पूछा क्या इनके लिए पुरुषार्थ या प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती? सद्दालपुत्र ने उत्तर दिया, नहीं, यह पुरुषार्थ और पराक्रम के बिना ही बन जाते हैं। यद्यपि सद्दालपुत्र का उत्तर ठीक नहीं था फिर भी भगवान् ने उसे दूसरी तरह समझाने का निश्चय किया। उन्होंने देखा कि सद्दालपुत्र अपने को भी नियति का एक अङ्ग मान रहा है और स्वयं जो प्रयत्न कर रहा है उसे भी नियति ही समझ रहा है। अतः ऐसे उदाहरण देने चाहिएं जो अस्वाभाविक या अनपेक्षित हों। जिसे वह प्रतिदिन के व्यवहार में सम्मिलित न कर सके। भगवान् ने पूछा–सद्दालपुत्र! यदि तुम्हारे इन बर्तनों को कोई चुरा ले, फोड़ दे या इधर-उधर फैंक दे अथवा तुम्हारी भार्या अग्निमित्रा के साथ दुर्व्यवहार करे तो उसे क्या दण्ड दोगे? ___ "भगवन् ! मैं उस पुरुष को धिक्कारूंगा, पीलूंगा, उसे पकड़ लूंगा, यहां तक कि उसके प्राण भी ले सकता हूं।" सद्दालपुत्र ने उत्तर दिया। भगवान् ने पूछा-तुम्हारे सिद्धान्त के अनुसार सब भाव नियत हैं। अर्थात् जो होनहार है वहीं होता है, व्यक्ति कुछ नहीं करता। ऐसी स्थिति में तुम्हारे बर्तन फूटने ही वाले थे। उनके लिए कोई व्यक्ति उत्तरदायी नहीं है फिर तुम ऐसा करने वाले को दण्ड क्यों देते हो? सद्दालपुत्र ने अपने उत्तर में यह कहा था कि बर्तन आदि फोड़ने वाला व्यक्ति अकाल में ही जीवन से हाथ धो बैठेगा। यह उत्तर अपने आप नियतिवाद का खण्डन करता है। भगवान् का उत्तर सुनकर सद्दालपुत्र समझ गया और वह नियतिवाद को छोड़कर पुरुषार्थ में विश्वास करने लगा। मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–“इच्छामि णं, भंते! तुब्भं अंतिए धम्म निसामेत्तए" || 202 // * छाया ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य एवमवादीत्—“इच्छामि खलु भदन्त! युष्माकमन्तिके धर्मं निशामयितुम् / ' शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए—उस आंजीविकोपासक सद्दालपुत्र ने, समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीर को, वंदइ नमसइ-वन्दना नमस्कार किया, वंदित्ता श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 301 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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